इन्दिरा व्रत (इन्दिरा एकादशी) वर्ष 2020 में 13 सितम्बर, रविवार को है। यह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आती है।
॥ अथ आश्विन कृष्ण एकादशी कथा ॥
युधिष्ठिर बोलते है – हे मधुसूदन ! प्रसन्न होकर मुझे कहिये कि आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम हैं ?
श्रीकृष्ण बोलते है आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा है, उसके व्रत के प्रभाव से महापाप (बड़े पाप) का भी नाश होजाता है। यह व्रत नीच योनि को प्राप्त पितरों की सुगति देनेवाली है।
हे राजन ! इस पापहारिणी कथा को सावधान होकर सुनो। जिसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञका फल प्राप्त होता है।
पहले सतयुग में, शत्रुओं को नाश करनेवाला इंद्रसेन नाम माहिष्मती पुरी का राजा था। वह धर्म से यशपूर्वक राज्य करता था। वह पुत्र पौत्र ओर घन-धान्य से युक्त था। और वह माहिष्मती का राजा बड़ा विष्णुभक्त था। और वह राजा मुक्ति के देने वाले भगवान का नाम स्मरण करता हुआ उन्हीं के ध्यान में समय बिताता था। तथा नित्य अध्यात्म – ज्ञानका विचार करता था।
एक दिन राजा सभामें सुखसे बैठा था, इतनेमें बुद्धिमान् नारदमुनि आकाश से उतर कर उसके पास पहुंचे। उनको आये हुए देख राजा उठा और हाथ जोड़ कर अर्घ की विधिसे उनका पूजन किया ओर उन्हें सुन्दर आसन पर बिठाया।
फिर सुख से बैठे हुए उन मुनि ने उस उत्तम राजा से कहा : हे राजेन्द्र ! तुम्हारे सेना आदि सातों राज अंगों में कुशल तो है ? तुम्हारी धर्म में भक्ति है ओर तुम्हारी विष्णु की भक्तिमें प्रीति है।
देवर्षि नारदजी के यह वचन सुनकर राजा उनसे बोला। राजा कहने लगा – हे मुनिश्रेष्ठ ! आपके आशीर्वाद से मेरे यहां सर्वत्र कुशल है और आज आपके दर्शन से मेरे यज्ञकी सब क्रियां सफल हुई।
और हे ब्रह्मर्षि जी ! कृपाकर अपने आने का कारण कहिये।
राजाका यह वचन सुनकर नारदजी कहने लगे – हे राजशार्दूल ! मेरे दुःखदायक वचन को सुनो । हे द्विजोत्तम ! मैं ब्रह्मलोक से यमलोक को गया था।
यमराज ने भक्ति से मेरा पूजन कर मुझे सुन्दर आसन पर बैठाया। वहाँ मैंने धर्मवान् राजा सत्यवान को यमराज की सेवा में देखा। वह बड़ा पुण्यात्मा था परंतु एक व्रत के खंडित होने के दोष से मैंने तुम्हारे पिताश्री को यमराज की सभा में देखा।
हे राजा ! उसने एक संदेशा कहा है, उसे सुनिये – “ इन्द्रसेन नामक एक राजा माहिष्मती पुरी का स्वामी है। हे ब्रद्मदेव ! उसके सामने कहो कि मैं पूर्वजन्म के किसी विघ्न के कारण यमराज के यहां पडा हुआ हूं। सो हे पुत्र ! तुम इन्दिरा व्रत के दान से मुझे स्वर्ग को भेजो। ”
हे राजा ! उसने यह कहलवाया है इसलिये मैं तुम्हारे पास आया हूँ।
हे राजा ! अपने पिताजी को स्वर्ग भेजने के लिये तुम इन्दिरा का व्रत करो, उस व्रत के प्रभाव से तुम्हारा पिताजी स्वर्ग को चले जायेंगे। राजा बोला – हे भगवन् ! आप प्रसन्न होकर इन्दिरा का व्रत मुझसे कहिये। यह व्रत किस पक्ष में किस तिथि को करते है और कौनसी विधिसे उसे करना चाहिये।
नारदजी बोले – हे राजन ! सुनो; में इस व्रत की सुन्दर विधि तुम्हारे हित के लिये कहता हूं ।
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में सुन्दर दशमी के दिन श्रद्धा युक्त मन से प्रातःकाल स्नान करे। फिर मध्यान्ह समय स्नान करके जल के बाहर आवे।
और श्रद्धापूर्वक पितरों के प्रसन्नार्थ श्राद्ध करे। एक बार भोजन कर रात्रि को पृथ्वी पर सोवे। दूसरे दिन जब सवेरा हो जाय और एकादशी आ जाय तब दातुन करके मुख धोवे। फिर भक्तिभाव से नियम स्वीकार करे, कि “ आज ! निराहार और भोग रहित होकर व्रत करूँगा। कल भोजन करूंगा। हे पुंडरीकाक्ष ! हे अच्युत ! मैं आपकी शरण में आया हूं, आप मेरी रक्षा करो ”
इस प्रकार नियम करके मध्यान्ह के समय शालिग्राम की शिला के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके फिर दक्षिणा आदि से पवित्र ब्राह्मणों का पूजन कर उन्हें भोजन करावे। और पितरों से शेष अन्न को सूंघकर ज्ञाता पुरुष उसे गौ को खिलावे। फिर धूप गंध आदि से भगवान का पूजन करके।
भगवान के सामने रात्रि को जागरण करे।
फिर द्वादशी के दिन जब प्रातःकाल हो जाय; तब भक्ति से भगवान की पूजा करे और फिर ब्राह्मण भोजन कराकर बंधु दौहित्र और पुत्र इनके साथ आनंदयुक्त और चुपचाप होकर स्वयं भोजन करे।
हे राजन् ! इस विधि से आलस्य छोडकर व्रत करोगे तो तुम्हारे पितर स्वर्गलोक को जायंगे।
हे राजन युधिष्ठिर ! राजा से यह कहकर नारदमुनि अंतर्धान हो गये और जैसी विधि बताई थी उसी से राजा ने इस उत्तम व्रत को पुत्र, सेवक और रनवास समेत किया।
हे युधिष्ठिर ! उस इन्दिरा व्रत के करने पर स्वर्ग से पुष्पों की वर्षा हुई। और उस राजा के पिताजी गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को चले गये। और राजर्षि इन्द्रसेन भी अकंट्क राज्य करके और अपने पुत्र को राज्यगद्दी पर बैठाकर स्वयं भी स्वर्ग को चले गये ।
यह इन्दिरा व्रत का माहात्म्य तुमको मैंने कहा है। इसके पढने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और इस लोक में सब भोगों को भोगकर अनंत कल तक विष्णु लोक में निवास करता है।
॥ इति श्री अश्विन कृष्ण एकादश्या इंदिरानामन्या माहात्यं समाप्तम् ॥