मकर संक्रांति भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है। इस त्यौहार को हर साल जनवरी के महीने में मनाया जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहते हैं। मकर संक्रान्ति स्नान-दान का पर्व है। आज से 127 साल पहले, उन दिनों के पंचांग के अनुसार यह 12 या 13 जनवरी को पड़ती थी। तथापि अब अयन चलन के कारण यह 14 या 15 जनवरी को पड़ती है।
संक्रांति का अर्थ होता है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना। वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करता है, संक्रांति की संज्ञा से विख्यात है। जैसा कि सर्वविदित ही है 12 राशियाँ होती हैं, सूर्य बारी-बारी से इन 12 राशियों से हो कर गुजरता है। 12 राशियों के हिसाब से 12 सूर्य संक्रान्तियाँ है – मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन संक्रांति। इन 12 में से भी ये 4 संक्रान्तियाँ विशेष महत्वपूर्ण है – मेष संक्रांति, कर्क संक्रांति, तुला संक्रांति और मकर संक्रांति।
जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर संक्रांति में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति होती है।
एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति की अवधि को सौर मास (Solar Month) कहते है। सूर्य जिस राशि पर स्थित हो, उसे छोड़ कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करें, उसे संक्रांति कहते है । सूर्य को एक राशि को पार करने में जो समय लगता है, वो अवधि ही सौर मास कहलाती है। ऐसे 12 मासों से सौर वर्ष बनता है।
प्रत्येक संक्रान्ति पवित्र दिन के रूप में माना गया है तथा हर संक्रान्ति पर सामान्य जल ( गर्म नहीं किया हुआ) से स्नान करना नित्य कर्म कहा जाता है।
संक्रान्ति, ग्रहण, अमावास्या एवं पूर्णिमा पर गंगा स्नान महापुण्यदायक माना गया है।
प्राचीन ग्रन्थों अनुसार मात्र सूर्य का ही किसी राशि में प्रवेश मात्र ही पुनीतता का द्योतक नहीं है, बल्कि अन्य सभी ग्रहों का किसी नक्षत्र या राशि में प्रवेश भी पुण्यकाल ही माना जाता है।
संक्रान्तियों के प्रकार
वर्ष भर में आने वाली 12 संक्रान्तियाँ चार श्रेणियों में विभक्त है:
1) अयन संक्रान्तियाँ :
मकर संक्रांति (जब उत्तरायण का आरम्भ होता है) एवं
कर्क संक्रान्ति (जब दक्षिणायन का आरम्भ होता है)
2) विषुव संक्रान्तियाँ :
मेष और तुला संक्रान्तियाँ, जब दिन और रात्रि बराबर होते है
3) षडशीति-मुख संक्रान्तियाँ :
मिथुन, कन्या, धनु और मीन
4) विष्णुपदी या विष्णुपद संक्रान्तियाँ:
वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ
संक्रान्ति के काल में किये गये एक कृत्य से भी कोटि – कोटि फलों की प्राप्ति होती है। संक्रान्ति के समय जो दान या जप किया जाता है, वह अक्षय होता है।
धर्म से आयु, सन्तान, सुख समृद्धि की वृद्धि होती है। अधर्म से व्याधि, शोक आदि बढ़ते है।
सूर्य संक्रान्ति के पूर्व या पश्चात् की 40 घड़ियों (16 घण्टे) को पुण्यकाल माना जाता है। उनमें भी 20 घड़िया ( 8 घण्टे ) अति उत्तम हैं।
सूर्य का दूसरी राशि में प्रवेश-काल इतना कम होता है कि उसमें संक्रान्ति – कृत्यों का सम्पादन असम्भव है। तथा उस काल का यथावत ज्ञान हमारी मांसल आँखों से सम्भव नहीं है, अतः संक्रान्ति के पहले या बाद की 30-40 घटिकाएँ में ही संक्रान्ति कृत्य किये जाते है।
देवी पुराण में संक्रांति-काल की लघुता का उल्लेख मिलता है।
देवी पुराण के अनुसार:
” स्वस्थ और सुखी मनुष्य जब एक बार पलक गिराता है तो उसका तीसवा काल “तत्पर” कहलाता है, “तत्पर” का सौवाँ भाग “त्रुटि” कहा जाता है, तथा त्रुटि के सौवें भाग में सूर्य का दूसरी राशि में प्रवेश होता है। सामान्य नियम यह है कि वास्तविक काल के जितने ही समीप कृत्य है| वह उतना ही पुनीत माना जाता है। “
संकान्ति दिन में भी हो सकती है या रात्रि में भी हो सकती है।
दिन वाली संक्रान्ति पूरे दिन भर पुण्यकाल वाली होती है।
रात्रि वाली संक्रान्ति के विषय में हेमाद्रि, माधव आदि में लम्बे विवेचन उपस्थित किये गये हैं। एक नियम यह कहता है कि दस संक्रान्तियों में (मकर एवं कर्कट को छोड़कर) पुण्यकाल दिन में होता है, जब कि वे रात्रि में पड़ती हैं।
पूर्ण पुण्यलाभ के लिए पुण्यकाल में ही स्नान-दान आदि कृत्य किये जाते हैं। सामान्य नियम यह है कि रात्रि में न तो स्नान किया जाता है और न दान।
पराशर में आया है कि सूर्यकिरणों से पूत दिन में ही स्नान करना चाहिए, रात्रि में ग्रहण को छोड़कर अन्य अवसरों पर स्नान नहीं करना चाहिए । यही बात विष्णुधर्मसूत्र में भी है। किन्तु कुछ अपवाद भी प्रतिपादित हैं। भविष्य० में आया है कि रात्रि में स्नान नहीं करना चाहिए, विशेषत: रात्रि में दान तो नहीं ही करना चाहिए, किन्तु उचित अवसरों पर ऐसा किया जा सकता है, यथा ग्रहण, विवाह, संक्रान्ति, यात्रा, जनन, भरण तथा इतिहास श्रवण में। अतः प्रत्येक संक्रान्ति पर, विशेषतः मकर-सक्रान्ति पर स्नान नित्य कर्म है।
दान निम्न प्रकार के किये जाते हैं:
- मेष संक्रान्ति में भेड़
- वृषभ संक्रान्ति में गौएँ
- मिथुन संक्रान्ति में वस्त्र, भोजन एवं पेय पदार्थ
- कर्कट संक्रान्ति में घृतधेनू
- सिंह संक्रान्ति में सोने के साथ वाहन
- कन्या संक्रान्ति में वस्त्र एवं गौएँ, नाना प्रकार के अन्न एवं बीज
- तुला-वृश्चिक संक्रान्ति में वस्त्र एवं घर
- धनु संक्रान्ति में वस्त्र एवं वाहन
- मकर संक्रान्ति में इन्धन एवं अग्नि
- कुंभ संक्रान्ति में गौएँ, जल एवं घास
- मीन संक्रान्ति में नये पुष्प