शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक स्वरूप

शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमा की चाँदनी में क्यों बैठा जाता है?

खीर को रात भर चन्द्रमा की चाँदनी में रात भर रख कर अगले दिन क्यों सेवन किया जाता है?

सुई में से भी धागे को सिर्फ चाँदनी की रौशनी में क्यों निकाला जाता है? ऐसा करना आँखों के लिये फायदेमन्द क्यों होता है?

क्या इन शरद पूर्णिमा के कृत्यों का कुछ वैज्ञानिक महत्व भी है, आइये जानते है।

 शरद ऋतु में पित्त का प्रकोप होता है तथा चन्द्रमा की चाँदनी पित्त का नाश करती है।
अतः उसकी शान्ति के लिए चन्द्रमा की चाँदनी का सेवन आवश्यक है, क्योंकि चाँदनी पित्त का निवारण करती है।

भावप्रकाश का कथन है कि:

 चाँदनी शीतल होती है, आनन्द देनेवाली और प्यास, पित्त तथा दाह को निवृत्त करनेवाली है।
सभी चाँदनी में ये गुण हैं, फिर शरद्‌ के पूर्णचन्द्र की चाँदनी में तो ये गुण और भी अधिक होते है।

अतः ऐसे समय श्वेत वस्त्र और गोदुग्ध तथा गोदुग्ध की खीर का उपयोग होना चाहिए।

शरद्‌ ऋतु की चर्या में चरकसंहिता कहती है — शरद ऋतु में उत्पन्न होनेवाले पुष्पों की मालाएँ, निर्मल वस्त्र और सांयकाल के समय की चन्द्र-किरणें, शरद ऋतु में प्रशस्त हैं ।
अतः यह स्पष्ट है कि शरद ऋतु के चन्द्रमा की अमृतमय किरणों से पवित्र हुई खीर और दूध का सेवन शरद ऋतु के पित्त का नाश करता है ।

चरकसंहिता में कहा गया है — वर्षाऋतु में हमारे अंग वर्षा और शीत के अभ्यस्त हो जाते हैं। वे जब सहसा सूर्य की किरणों से संतप्त होते हैं तो संचित पित्त प्रायः शरद ऋतु में प्रकुपित हो जाता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा के चाँद की अमृतमय किरणों से पवित्र हुई खीर और दूध का सेवन विशेष लाभदायी होता है।

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *