भोजन के कुछ नियम

- भोजन को ईश्वर को अर्पण करके खाना चाहिए और भोजन की निंदा नहीं करनी चहिये, बिना निंदा किये खाना करना चाहिए।
- मनुस्मृति के अनुसार, भूख लगने पर ही भोजन ग्रहण करना चाहिए और प्रसन्नतापूर्वक करना चाहिये। तथा भोजन स्नान करने के पश्चात् ही करना चाहिए।
- हड़बड़ाहट में खाना नहीं खाना चाहिए, बल्कि अच्छे से चबा चबाकर खाना करना चाहिये।
- बहस या लड़ाई झगड़ा करते हुए खाना नहीं खाना चाहिये।
- दुष्ट लोगो के साथ बैठ कर खाना नहीं करना चाहिए।
- पंगत (पंक्ति भोजन) में सबके खाना आने के पश्चात् ही शुरू करना चाहिए।
- पंगत में बहुत ही जल्दी खाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये।
- फूटे बर्तन में नहीं खाना चाहये, यह दरिद्रता लाता हैं।
- जूते चप्पल पहन कर खाना नहीं खाना चाहिये।
- बिना घृत खाना नहीं खाना चाहिये।
- हाथ पर, कपड़े पर, बट-पत्रपर, अर्क-पत्र पर, पत्थर पर, ताम्बे के बर्तन में या पीपल के पत्तों पर खाना नहीं करना चाहिये।
- भोजन करने के लिए पलाश पत्र, कमल दल के पत्ते, आम के पत्ते, केले के पत्ते, पीतल, काँसे, सोने व चांदी के बर्तन ही सर्वोत्तम है।
- जल को अग्नि पर पकाकर, फिर उसे ठण्डा करके पीना चाहिए। इस प्रकार का पानी त्रिदोष का नाश करता है।
- भावप्रकाश ग्रन्थ के अनुसार पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।
भावप्रकाश आयुर्वेद का एक मूल ग्रन्थ है।
- भारतीय संस्कृति का विधान है कि सबको खिलाकर खाना चाहिए । इसके लिए ही हमारी संस्कृति में नित्य “बलिवैश्वदेव” करने को कहा गया है।
बलिवैश्वदेव : भोजन का कुछ अंश कीट(चींटी), पशु, पक्षी के लिए निकालना। इसी कारण चींटी से लेकर चिड़िया, कबूतर, कौवे, गाय, कुत्ते को भोज्य अंश देने की परम्परा रही है ।