संकल्प और आचमन क्या होता है?

संकल्प क्या होता है ?
किसी कार्य के लिए शपथ उठाना, दृढ़ प्रतिज्ञा करना ही संकल्प है। शपथ कभी कभी गलत कार्य करने के लिए भी ली जाती है। इसके विपरीत पूर्ण श्रद्धा, आत्मविश्वास एवं विनम्रतापूर्वक शुभ कार्य करने को प्रेरित अनुष्ठान का नाम संकल्प है।

संकल्प क्यों लिया जाता है ?

संकल्प के बिन किसी कार्य का शुभारंभ नहीं होता। मनुस्मृति के अध्याय 2, श्लोक 3 में कहा गया है:

संकल्पमूल -कामो वै, यज्ञाः संकल्पसम्भवा: |
व्रतानियमधर्मश्च सर्वे संकल्पजास्स्म्रुताः ||

अर्थात समस्त कामनाएं संकल्प की ही मूलक है। सब यज्ञ संकल्प के अनन्तर ही सम्पन्न होते है। व्रत, उपवास और संध्या आदि समस्त धर्मानुष्ठान संकल्पजनित है

संकल्प

संकल्प की क्या विशेषताएं है ?
संकल्प के माध्यम से हमें हमारे इतिहास का ज्ञान होता है। साथ में यह भी ज्ञात होता है कि यह सृष्टि बने हुए कितने वर्ष हो गए और आज कौनसा वर्ष, शक-सम्वत चल रहा है। निरंतर ज्योतिष के ज्ञान का संरक्षण होता है कि कौन सी तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त, सूर्य-चन्द्र कौनसी राशियों में चल रहे है। संकल्प में हमें अपनी जाती, गोत्र व अन्य विशेषताओं का सदैव संस्मरण व गौरव रहता है। यह भी स्मरण रहता है कि हमारे हिंदुस्तान का विस्तार पृथ्वी के कितने भूभाग पर है। संध्या वंदन करने वाले साधारण हिन्दू के पास संकल्प के रूप में दुनिया के जटिलतम प्रश्नों का नितांत स्पष्ट व सच्चा रिकॉर्ड रहता है। इसके साथ ही संकल्प के द्वारा व्यक्ति अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए पापकर्मों से ऋणमुक्त होकर नई शक्ति व ओजस्विता को प्राप्त करता है।

आचमनी क्या है ?

संकल्प के लिए जिस ताम्बे या चांदी के चम्मच में जल ग्रहण किया जाता है उसे आचमनी कहते है।

आचमन करने का वैज्ञानिक आधार क्या है ?
कंठशोधन करने के लिए आचमन किया जाता है। आचमनी करने से कफ के निःस्त्रित हो जाने के कारण श्वास-प्रश्वास क्रिया में और मंत्रादि शुद्ध उच्चारण में भी अपेक्षित सहकार्य प्राप्त होता है।

आचमन तीन बार क्यों किया जाता है ?
तीन बार आचमन करने की क्रिया धर्मग्रंथो द्वारा निर्दिष्ट है। तीन बार आचमन करने से कामिक, मानसिक और वाचिक त्रिविध पापों की निवृति होकर व्यक्ति को अदृष्ट फल की प्राप्ति होती है

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