कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को सायंकाल में यम-दीपदान किया जाता है। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धन त्रयोदशी या धन तेरस कहा जाता है।
इस दिन प्रदोष काल में यम के लिए दीपदान एवं नैवेद्य समर्पित करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।
मानव को अकाल मृत्यु से बचाने के लिए दो ही वस्तु तो आवश्यक है।
1) प्रकाश = ज्ञान और
2) नैवैद्य = समुचित आहार
यदि यह दोनों ही वस्तु आप खुले हाथों दान दें तो न केवल आपकी किन्तु सभी देशवासियों की अकाल मृत्यु से निःसन्देह रक्षा होगी ही।
यम-दीपदान
त्रयोदशी को चौराहे में या घर के द्वार पर दीपक जलाया जाता है। दीपदान से चातुर्मास्य के संचित कीटाणुओं की समाप्ति होती है। अतः इस दीपदान को यम-दीपदान कहना सर्वथा उचित ही है।
त्रयोदशी को चौराहे में या घर के द्वार पर दीपक जलाया जाता है। दीपदान से चातुर्मास्य के संचित कीटाणुओं की समाप्ति होती है। अतः इस दीपदान को यम-दीपदान कहना सर्वथा उचित ही है।
यम मृत्यु के अधिष्ठाता देवता है और रास्ते, चौराहे आदि में प्रायः मलिनता, कूड़ा आदि के संसर्ग होने से मार्ग की धूलि में रोगों के अनेक कीटाणु विद्यमान रहते है। तेल के जलने से जो तीव्र गन्ध उत्पन्न होती है उससे अधिकांश धूलिगत कीटाणुओं का नाश संभव है।
निर्णयसिन्धु में यम-दीपदान का वर्णन करते हुए स्कन्द पुराण का यह वचन कहा गया है : कार्तिक की त्रयोदशी को सायंकाल में घर से बाहर दीपदान करना चाहिए। इससे अपमृत्यु नष्ट होती है।
यह दीप-दान दीपावली का आरंभिक रूप है। दीप-दान कीटाणु विनाश द्वारा अपमृत्यु के विनाश में सहायक होता है। तेल के जलने से जो तीव्र गन्ध उत्पन्न होती है उससे अधिकांश धूलिगत कीटाणुओं का नाश संभव है।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धन तेरस क्यों कहते है?
संसार के रोगी प्राणियों के लिए अमृत-कलश लिए हुए समुद्र मंथन से उत्पन्न होने वाले धन्वंतरि भगवान ने आयुर्वेद का ज्ञान प्रदान कर जो महान उपकार किया था वह किसी से छिपा नहीं है।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी उन्हीं धन्वन्तरि भगवान की जयन्ती है, जिसे हम साधारणतया धनतेरस कहते है।