विजयादशमी पर्व विशेष

विजयादशमी वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है। इसीलिए इस दिन बच्चो को अक्षरज्ञान प्रारम्भ कराते है तथा इसी दिन लोग नया कार्य आरम्भ करते है । इसी दिन श्रवण नक्षत्र में राजा महाराजा विजय के लिए प्रस्थान करते थे । विजयादशमी विजय तथा शांति के लिए अत्यंत शुभ तिथि है।

विजयादशमी का पर्व वर्ष 2020 में 25 अक्टूबर को है।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने नौ दिनों तक भगवती दुर्गा की आराधना से शक्ति संचय करके, विजयादशमी के दिन ही रावण विजय के लिए प्रस्थान किया था।

इस भीषण युद्ध में श्रीराम की विजय हुई और रावण का सर्वनाश हो गया।

राम की रावण पर विजय सत्य की असत्य पर, धर्म एवं न्याय की अधर्म व अन्याय पर विजय थी; जिसे इतने सुदीर्घ काल के बाद भी रामलीला के रूप में सर्वदा दोहराया जाता है और रावण व उसके साथियो को जलाया जाता है। रावण के पुतले का जलना यह सिखाता है कि अत्याचारी और दुराचारी एक दिन इसी प्रकार नष्ट हो जाता है, चाहे वह कितना ही प्रबल क्यों न हो।

विद्वानों का कहना है कि विजयादशमी के दिन धर्म की रक्षा के लिए श्रीराम ने शस्त्र पूजा की थी। इसके बाद रावण की प्रतिकृति यानी पुतला बनाया था। फिर विजय मुहूर्त में स्वर्ण शलाका से उसका भेदन किया था। यानी सोने की डंडी से उस पुतले को भेद कर युद्ध के लिए प्रस्थान किया था। विद्वानों के मुताबिक ऐसा करने से युद्ध में जीत मिलती है। माना जाता है कि तुलसीदास जी के समय से विजयादशमी के दिन रावण दहन की परंपरा शुरू हुई।

विजयादशमी – विजय के लिए प्रस्थान करने का प्रतीक

त्रेता युग में श्री राम प्रभु ने श्रवण नक्षत्र से युक्त दशमी तिथि को रावण विजय के लिए प्रस्थान करने के लिए चुना था। तभी से विजयादशमी विजय के लिए प्रस्थान करने का प्रतीक बन गया । इसके बाद द्वापर युग में अर्जुन ने धृष्टद्युम्न के साथ गोरक्षा के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था।

इसी दिन श्रवण नक्षत्र में राजा महाराजा विजय के लिए प्रस्थान करते थे। मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म की रक्षा की थी। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं, जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे। दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है।

विजयादशमी का शास्त्रीय स्वरुप

  1. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तारो के उदय होने के समय “विजय” नाम का मुहूर्त होता है जो कि सम्पूर्ण कार्यों को सिद्ध करता है।
  2. इस दिन सभी मनुष्यों को प्रगति के लिए सीमा का उल्लंघन करना चाहिए क्योंकि श्रीराम ने श्रवण नक्षत्र से युक्त दशमी तिथि को ही रावण विजय के लिए प्रस्थान करने के लिए चुना था। सीमा उल्लंघन का यह शास्त्रीय उपदेश मानव को यह प्रेरणा देता है कि उसे एक सीमित परिधि में संतुष्ट ना रहकर सदैव आगे बढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए और तब तक बढ़ते ही रहना चाहिए जब तक जीवन में दशहरा आता रहे।

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