पुली का त्यौहार अपने आप में अनूठा है जो कि अन्य त्यौहारों की तरह किसी तिथि विशेष को न मनाकर किसी वार विशेष को मनाया जाता है
पुली पूर्णतया भाई बहन का त्यौहार है जिसको रक्षा बंधन (अर्थात श्रावण मास की पूर्णिमा ) से ठीक पहले आने वाले रविवार को मनाया जाता है । इस दिन भाई अपनी बहन के ससुराल, बहन को रक्षाबंधन का न्यौता देने जाता है।
आईये जानते है पुली क्या है?
भाई बहन को एक पैकेट में मेहंदी भर कर उस पर लच्छा (रोली ) बांध कर देता है और साथ में नकद (धन) भी देता है। इसे ही पुली कहते है।
पुली देने के पश्चात् भाई बहन को रक्षाबन्धन पर आने का न्यौता देता है। भाई जब पुली देने जाता है तो वह अपने बच्चो के साथ अपनी बहन के ससुराल में ही भोजन करता है। तथा बहन भाई, भतीजे-भतीजियों के तिलक लगाती है।
पहली पुली देने के बाद से ही बहन रक्षाबंधन पर अपने ससुराल से भाई के लिए मिठाई ले जाती है।
बहन का विवाह होते ही भाई पहली पुली देने नहीं जाता। पहली पुली लड़की के मायके वालो द्वारा दिलाई जाती है, उसके बाद से ही हर साल भाई बहन को पुली देने जाता है। जब लड़की के मायके वाले पहली पुली दिलाने जाते है, तो लड़की के ससुराल वालों के लिए कपड़े ले जाते है और खाना करते है जिसमे ख़ास ख़ास रिश्तेदारों को बुलाया जाता है तथा लड़की को पुली तथा जेवर (गहने) देते है। गहने केवल पहली पुली पर ही दिए जाते है।
पुली-रक्षाबंधन का भाई बहन दोनों को ही प्रतीक्षा रहती है। यह त्यौहार मात्र परम्परा नहीं है वरन भाई – बहन के रिश्ते को और भी गहरा करता है।
चूँकि यह त्यौहार तिथि विशेष को न मनाकर रविवार को मनाया जाता है अतः कभी तो पुली का त्यौहार रक्षाबंधन से ठीक एक दिन पहले आ जाता है व कभी दोनों के बीच में एक सप्ताह भी निकल जाता है।
पुली-रक्षाबंधन से ही त्यौहारो की शुरुवात हो जाती है। इसके बाद एक के बाद एक त्यौहर जैसे जन्माष्टमी, वत्स द्वादशी, हरतालिका तीज, गणेश चतुर्थी आदि आते है।