महीनों के नाम किस आधार पर रखे गए है ?
मास शब्द का एक अर्थ चंद्र है। माह शब्द भी चन्द्रवाचक ‘मास’ शब्द से बना है। चन्द्रवाचक शब्द ‘मास’ के ‘स’ का ‘ह’ होकर ही माह शब्द बना है। वेदों में चन्द्रमा को मास का बनाने वाला कहा गया है क्योंकि चन्द्रमा से ही मास का ज्ञान होता है।
मास निम्न प्रकार के होते है :
- चंद्र/चांद्र
- सौर
- नाक्षत्र
- सावन
चंद्र मास ही मुख्य रूप से प्रचलित है। मास शब्द से हमें चंद्र मास ही समझना चाहिए।
चंद्र मासों के नाम किस आधार पर रखे गए है ?
पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर रहता है, उस नक्षत्र के नाम पर ही चंद्र मासों के नाम रखे गए है।
पुष्ययुक्ता पौर्णमासी पौषी मासे तु यत्र सा ।
नाम्ना स पौषो माघाद्याश्चैवमेकादशापरे ।।
अमरकोश
अर्थात जिस पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र रहता है, उस पूर्णिमा का नाम पौषी है और वह पूर्णिमा जिस मास में हो, उसे पौष मास कहते है। इसी प्रकार से चैत्रादि अन्य मासों का नामकरण हुआ।
अतः चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार महीनों के नाम ये पड़े:
- चैत्र : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर हो।
- वैशाख : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र पर हो।
- ज्येष्ठ (जेठ) : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र पर हो।
- आषाढ़ : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पर हो।
- श्रावण : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र पर हो।
- भाद्रपद : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र पर हो।
- आश्विन : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र पर हो।
- कार्तिक : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र पर हो।
- मार्गशीर्ष : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र पर हो।
- पौष : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र पर हो।
- माघ : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा मघा नक्षत्र पर हो।
- फाल्गुन : वह माह जिसकी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र पर हो।
एक मास में दो पक्ष होते है – शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। एकम से पूर्णिमा वाला पक्ष शुक्ल पक्ष कहलाता है और एकम से अमावस्या वाला पक्ष कृष्ण पक्ष कहलाता है।
शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक अथवा कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक की अवधि एक चंद्र मास कहलाती है। प्रथम प्रकार के मास को अमांत मास कहा जाता है और दूसरे को पुर्णिमांत मास कहते है। उत्तर भारत में पुर्णिमांत मास प्रचलित है और दक्षिण में अमांत मास। पूर्णिमाांत मास, पूर्णिमा को समाप्त होता है और अमांत मास अमावस्या को समाप्त होता है।
प्राचीन कालों में महीने पुर्णिमांत (पूर्णिमा पर अंत होने वाले) थे।
होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है। और यही वह तिथि होती है जब फाल्गुन महीना समाप्त होता है। ऐसे 12 मासों से 354 दिनों का चंद्र वर्ष बनता है। और छ: ऋतुओं के हिसाब से एक ऋतु में दो माह आते है। प्रारम्भ से ही ऋतुएँ तीन ही चली आ रही है – ग्रीष्म (गर्मी), वर्षा (बरसात) और हेमंत (सर्दी/जाड़ा)। बाद में इन्हीं ३ ऋतुओं के दो-दो भाग करके छः ऋतुएँ मानी जाने लगी – बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर।
वैदिक विज्ञान के अनुसार मासों के वैदिक नाम इस प्रकार से है:
- मधु
- माधव
- शुक्र
- शुचि
- नभस्
- नभस्य
- इष
- उर्ज
- सहस्
- सहस्य
- तपस्
- तपस्य
मासों के वैदिक नाम ऋतुओं से सम्बन्ध रखते है।
6 ऋतुओं के हिसाब से प्रत्येक ऋतु में दो माह होते है। बसन्त ऋतु में मधु और माधव महीने आते है। ग्रीष्म ऋतु में शुक्र और शुचि महीने आते है। वर्षा ऋतु में नभस् और नभस्य महीने होते है। शरत् ऋतु में इष और उर्ज महीने होते है। हेमन्त ऋतु में सहस् और सहस्य महीने आते है। तथा शिशिर ऋतु में तपस् और तपस्य महीने आते है।
प्रत्येक ऋतु का अर्थ उसमे आने वाले माह से मिलता जुलता है। ऋतुओ के वैदिक अर्थ जानने पर हमें यह पता चलता है कि वसंत ऋतु का मधु महीने से, ग्रीष्म ऋतु का शुक्र महीने से, वर्षा ऋतु का नभस् महीने से, शरद् ऋतु का इष् महीने से, हेमन्त ऋतु का सहस् महीने से और शिशिर ऋतु का तपस् महीने से अवश्य ही कुछ सम्बन्ध है।