स्वास्थ्य के लिए अच्छा खाना ही मायने नहीं रखता। हम कौनसी धातु के बर्तन में खाना खाते है यह भी महत्व रखता है। ताम्बा, पीतल, लोहा के बर्तन उपयोग में लाईये और स्वस्थ रहिये।
आइये जानते है ताम्बा पीतल स्टील आदि प्रयोग में लाने से क्या फायदा नुकसान होता है।
स्टील के बर्तन
आजकल स्टील के बर्तनों का ही मुख्यतया से उपयोग होता है। तथा दुकानों पर भी सर्वाधिक रूप से स्टील के बर्तन ही मिलते है। वर्तमान समय में पूजा, रसोई, बर्तनों की दुकान आदि सब जगह स्टील के बर्तनों का ही साम्राज्य है। और हो भी क्यों नहीं स्टील के बर्तन दिखने में चांदी की तरह चमकते है, किफायती होते है तथा इनको साफ़ करने में भी ज्यादा मेहनत नहीं लगती है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाये तो स्टील के बर्तन का न तो लाभ है न ही ये नुकसानदायक होते है क्योंकि ये ना ही गर्म होने पर क्रिया करते है और ना ही अम्ल से। इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता।
लोहे के बर्तन
लोहे के बर्तन में खाना बनाने से तैयार किये गये भोजन में आयरन तत्व बढ़ जाते हैं। लोहतत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहतत्व युक्त भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है। जो लोग जल्दी ही थक जाते है उनके लिए लिए तो लोहतत्व विशेष लाभकारी है; क्योंकि लोहतत्व ऊर्जा (एनर्जी) को बढ़ाता है।
परन्तु लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और स्मरण शक्ति का ह्रास होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।
अत: एनीमिया और पीलिया रोगों से जब खून की कमी हो जाती है तब लोहे के बर्तनों में खाना बनाना विशेष लाभदायक होता है। इनके अलावा भी लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है।
खून की कमी हो जाने पर डॉक्टर-वैद्य भी आयरन की दवाई तो देते ही है। साथ ही वो प्राकृतिक रूप से लोह तत्व बढ़ने के लिए लोहे के बर्तन में खाना पकने और लोहतत्व युक्त फल-सब्ज़ी खाने की सलाह भी देते है।
तांबा
आयुर्वेद के अनुसार – ” तांबा, कसैला, मधुर, कड़वा, खट्टा, पक में चटपटा, दस्तावर, पित्त तथा कफ को नष्ट करने वाला, शीतल, रोपण, (घाव को भरने वाला) पाण्डुरोग, उदररोग, बवासीर, ज्वर, कोढ, खांसी, श्वास, क्षय, वीनस, अम्लपित्त, सूजन, कृमि, तथा शूल को नष्ट करता है। “
तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है और उसका रक्त शुद्ध होता है। तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। कब्ज के मरीजों के लिये तांबे के बर्तन विशेष हितकारी होते हैं। तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है। तांबे के बर्तन चूंकि अपेक्षाकृत अधिक भारी होते हैं, अत: उसमें खाना धीरे-धीरे बनता है जो कि अधिक पौष्टिक होता है। तेज आग पर खाना पकाने से भोजन में पौष्टिक तत्त्व कम हो जाते हैं।
पीतल
आयुर्वेद के अनुसार ” पीतल का पात्र वातकारक रुक्ष,उष्ण होता है और कृमि तथा कफ को दूर करने वाला होता है। “
जब स्टील के बर्तन इतने प्रचलन में प्रचलित नहीं थे तब तो पीतल के बर्तनों का बहुतायत में प्रयोग होता था। आज भी प्रत्येक रसोई में पीतल के कुछ बर्तन ( विशेष रूप से तपेली, थाली आदि) तो मिल ही जाएंगे।
पीतल की प्रकृति गरम होती है। पीतल के बर्तनों में कौटाणुओं को नष्ट करने को क्षमता भी कम नहीं होती है। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व ही नष्ट होते हैं।
पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से पेट के कीड़े नष्ट होते है। और कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती है। पीतल के बर्तनों में तैयार भोजन शरीर को निरोग रखता है लेकिन पीतल के बर्तनों पर कलई करवाना आवश्यक है। क्योंकि बिना कलई किये हुए बर्तनों में खट्टी वस्तु पकाने पर विष हो जाती है।
काँसा
आयुर्वेद के अनुसार – ” काँसे के बर्तन में खाना खाने से स्मरण शक्ति तीव्र होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित्त शांत रहता है, भूख बढ़ाती है और पाचन क्रिया भी तीव्र होती है। “
पहले काँसे के बर्तनों का प्रयोग किया जाता था। आजकल वैसे तो इनका प्रयोग नहीं किया जाते है लेकिन बड़ें बुजुर्गों यो की रसोई में कांसे के कुछ बर्तन अब भी मिल ही जाएंगे। काँसे के बर्तन के प्रयोग से पित्त की शुद्धि होती है और बुद्धि बढ़ती है।
काँसे के बर्तन में खट्टा खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहिए। खट्टा खाद्य पदार्थ इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाता है जो कि नुकसान देता है। काँसे के बर्तन में भोजन पकाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए काँसे के बर्तन अवश्य प्रयोग में लाईये।
चांदी
आयुर्वेद के अनुसार – ” चांदी शीतल, कसैली, खट्टी , पाक में तथा रस में मधुर, दस्तावर, आयुस्थापक, स्निग्ध, रेचक, वात तथा पित्त को जीतने वाली, और प्रमेहादि रोगों को शीघ्र नष्ट करती है। “
चांदी की प्रकृति शीतल होती है; जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है।
अतः चांदी के बर्तनों का प्रयोग शरीर को शांत रखता है और मानसिक शांति प्रदान करता है । इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है। इसीलिए चांदी के बर्तनों का प्रयोग प्राचीनकाल से ही किया जा रहा है। आज भी कई घरों में चांदी के टी-सैट और ग्लास आदि का उपयोग होता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए चाँदी के बर्तन में दूध पीना चाहिए ।
सोना
स्वर्ण (सोना) सबसे उत्तम धातु है। धर्मशास्त्र में भी आया है कि स्वर्ण धातुओं का राजा है। क्योंकि स्वर्ण में जंग नहीं लगता। यह ख़राब (विकृत) नहीं होता और इसकी चमक स्थाई रहती है।
सुवर्ण में रोग प्रतिरोधक शक्ति सबसे अधिक होती है।
वैदिक युग में राजा-महाराजा सोने के पत्रों का उपयोग करते थे। ऐसी कई पौराणिक कहानियां मिलती हैं जिनमें किसी राजा द्वारा ऋषि-मुनियों का सत्कार करने के लिये सोने के बर्तनों का प्रयोग किया करते थे। कृष्ण भगवान ने भी सोने के बर्तन में सुदामा के पैर धोये थे।
आयुर्वेद के अनुसार – ” सुवर्ण, शीतल, बलदायक, भारी, रसायन, स्वादिष्ट, कड़वा, कसैला, पाक में मीठा, पिच्छिल, पवित्र, युष्टिदायक, नेत्रों को हितकारी, बुद्धि, स्मरणशक्ति तथा विचारशीलदायक, हृदय को प्रिय, आयु को बढ़ाने वाला, कान्ति तथा वाणी को स्वच्छ करने वाला, स्थिरतादायक, व तीनों दोष व ज्वर तथा रोष का नाशक है। ”’
अतः सोने से बने पात्र में भोजन पकाने तथा करने से शरीर कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनता है, आँखों की रौशनी और रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही प्राचीनकाल से ही सोने के बर्तन प्रयोग में लाये जाते थे।