आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरत्पूर्णिमा कहते है। यह उत्सव रात्रि में किया जाता है।
शरद पूर्णिमा की रात्रि को ही कृष्ण भगवान् ने महारास किया था। रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान् कृष्ण ने जगत के कल्याणार्थ ही निश्चित करा है।
चन्द्रमा की चांदनी शरद ऋतु में जैसी आनन्दायक और लाभदायक होती है वैसी अन्य किसी ऋतु में नहीं होती है।
इस दिन चन्द्रमा की किरणों में से अमृत झरता है। इसीलिए रात्रि को चन्द्रमा की चाँदनी में बैठा जाता है, खीर को रात भर चन्द्रमा की चाँदनी में रखा जाता है और अगले दिन खाया जाता है। ऐसा करना आँखों के लिये बहुत फायदेमन्द होता है।
साथ ही चन्द्रमा की चाँदनी में सुई में से धागा निकाला जाता है। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है।
भगवान् कृष्ण के रासोत्सव का दिन होने के कारण यह उत्सव विशेषत: कृष्ण-मन्दिरों में तथा विष्णु-मन्दिरों में और साधारणतया सभी देव-मन्दिरों में मनाया जाता है।
इस दिन विशेष सेवा-पूजा के अतिरिक्त भगवान् के सायं-काल के भोग में खीर अथवा दूध अवश्य रहना चाहिए ।
पूर्णचन्द्र की चाँदनी में भगवान् को विराजमान करके दर्शन की भी विधि है । भगवान् का श्रृंगार भी श्वेत वस्त्रों और मोतियों से किया जाता हे।
धर्मशास्त्रों में इस दिन ‘कोजागर’ व्रत भी लिखा है। इसे ‘कौमुदीत्रत’ भी कहते हैं। कोजागर’ व्रत करनेवालों को इस दिन लक्ष्मी तथा इन्द्र की पूजा करनी चाहिए और रात्रि में जागरण करना चाहिए ।
शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक स्वरूप
शरद ऋतु में पित्त का प्रकोप होता है तथा चन्द्रमा की चाँदनी पित्त का नाश करती है।
चरकसंहिता में कहा गया है – वर्षाऋतु में हमारे अंग वर्षा और शीत के अभ्यस्त हो जाते हैं, वे जब सहसा सूर्य की किरणों से संतप्त होते हैं तो संचित पित्त प्रायः शरद ऋतु में प्रकुपित हो जाता है । अतः उसकी शान्ति के लिए चन्द्रमा की चाँदनी का सेवन आवश्यक है, क्योंकि चाँदनी पित्त का निवारण करती है।
भावप्रकाश का कथन है कि – चाँदनी शीतल होती है, आनन्द देनेवाली और प्यास, पित्त तथा दाह को निवृत्त करनेवाली है। सभी चाँदनी में ये गुण हैं, फिर शरद् के पूर्णचन्द्र की चाँदनी में तो ये गुण और भी अधिक होते है। अतः ऐसे समय श्वेत वस्त्र और गोदुग्ध तथा गोदुग्ध की खीर का उपयोग होना चाहिए।
शरद् ऋतु की चर्या में चरकसंहिता कहती है – शरद ऋतु में उत्पन्न होनेवाले पुष्पों की मालाएँ, निर्मल वस्त्र और सांयकाल के समय की चन्द्र-किरणें, शरद ऋतु में प्रशस्त हैं ।
अतः यह स्पष्ट है कि शरदऋतु के चन्द्रमा की अमृतमय किरणों से पवित्र हुई खीर और दूध का सेवन शरद ऋतु के पित्त का नाश करता है ।
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