हेमन्त ऋतु में मार्गशीर्ष (सहस्) और पौष (सहस्य) मास आते है। मार्गशीर्ष और पौष मासों के प्रचलित नाम है। सहस् और सहस्य मासों के वैदिक नाम है जिनका सम्बन्ध ऋतु से है । इष और उर्ज मासों के नाम व अर्थ हेमन्त ऋतु के अर्थ से समानता रखते है।
यह शरद् ऋतु के पश्चात आती है। हेमन्त ऋतु के पश्चात् शिशिर ऋतु आती है।
निघण्टु (वैदिक शब्दकोश) में “सहस्” शब्द का अर्थ बल बताया गया है, क्योंकि सहन करना भी एक तरह से बल का ही कार्य है। इस “सहस्” शब्द से ही सहा: और सहस्य शब्द बने है। अतः यह सिद्ध हुआ कि उस ऋतु को हेमन्त ऋतु कहते है जिसमें अन्न-पानादि के उपयोग से बल की वृद्धि होती है। स्पष्ट रूप से भी यही देखने को मिलता है कि अन्य ऋतुओं की अपेक्षा हेमन्त ऋतु में अन्न-पानादि अधिक बलप्रद होते है। साथ ही सभी प्राणियों की कार्यक्षमता भी इस ऋतु में अधिक हो जाती है।
सहस् (मार्गशीर्ष) : सहस् उस मास को कहते है जिसमें बल की अभिवृद्धि होती है। सहस् मास को मार्गशीर्ष मास भी कहते है। इसका मार्गशीर्ष नाम चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार है। जिस मास की पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा ”मृगशिरा” नक्षत्र पर होता है वह मार्गशीर्ष मास कहलाता है।
सहस्य (पौष) : सहस्य उस मास को कहते है जिसमें प्राणियों का बल स्थिर होता है। सहस्य मास को पौष मास भी कहते है। इसका पौष नाम चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार है। जिस मास की पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा ”पुष्य” नक्षत्र पर होता है वह पौष मास कहलाता है।
हेमन्त ऋतु में हितकारी आहार
हेमन्त ऋतु में गेहूँ, चावल, उड़द, पिट्ठी के पदार्थ, नया अन्न, गुड़, मिश्री, चीनी, दूध और दूध से बने पदार्थ (जैसे घी, रबड़ी, मलाई, मावा, मलाई, छैना, पनीर, पेढ़ा, रसगुल्ला आदि) तथा तेल का सेवन विशेष रूप से करना चाहिए। साथ ही गर्म पानी का सेवन भी लाभकारी होता है।
अदरख, सोंठ, मेथी, सेंधानमक, कमलगट्टा, इलायची, जायफल, जमीकन्द, दाख, बथुआ, तरोई, खीरा और विलायती अनार भी खाने में हितकारी होते है।
खान-पान में ठंडी चीज़ों की अपेक्षा शरीर को गर्मी पहुँचाने वाली वस्तुओं का सेवन ही शीत ऋतु में योग्य है।
शीत ऋतु में सुबह नाश्ते में हलुवा, लड्डू, ताजी जलेबी या पौष्टिक पाक खाकर दूध पीना चाहिए।
अतिरिक्त पौष्टिक पदार्थ खाने से अग्नि मन्द ना हो जाये इसलिए विशेषकर प्रातः टहलना, सूर्यनमस्कार और यथाशक्ति व्यायाम अवश्य करना चाहिए।