वर्षा ऋतु का नामकरण किस आधार पर किया गया है ?

वर्षा ऋतु में श्रावण (नभ) और भाद्रपद (नभस्य) मास आते है। श्रावण और भाद्रपद मासों के प्रचलित नाम है। नभ और नभस्य मासों के वैदिक नाम है जिनका सम्बन्ध ऋतु से है। वर्षा ऋतु का अर्थ और नभ और नभस्य मासों के नाम और अर्थ में समानता है।

नभ और नभस्य दोनों ही शब्द ” नभस् ” शब्द से बने हुए है।

वह पदार्थ जिसके द्वारा रस अर्थात जल पहुँचाया जाता है या जो प्रकाश को ढक देता है, उस तत्व को नभस् कहते है।

श्रीमद्भागवत में भी आया है कि :
अष्टौ मासान् नीपितं यद् भुम्यश्वोदमयं वसु।
स्वगोभिर्मोक्तुमारेभे पर्जन्य: काल आगते।।

अर्थात आठ महीनों तक जो जल सूर्य की किरणों से भाप बनकर आकाश में अप्रकट रूप से स्थित था; उसको प्रकट रूप में लाकर जल का स्वरुप देने वाले तत्त्व को अथवा (या) सूर्य को ढकने वाले तत्व को नभस कहते है। और वह तत्त्व जिस ऋतु में प्रधानता से कार्य करता है, वह वर्षा ऋतु कहलाती है।

नभस् के अन्य नाम :
पर्जन्य, बरसते हुए बादल

नभस् (श्रावण) मास

नभस उस मास को कहते है जिसमे जल के प्रतिबंधक तत्वों (जल को रोकने वाले तत्त्व) का विनाश होता है। नभस् मास को श्रावण मास भी कहते है। इसका श्रावण नाम चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार है। जिस मास की पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा ” श्रवण ” नक्षत्र पर होता है वह श्रावण मास कहलाता है।

नभस्य (भाद्रपद) मास

नभस्य उस मास को कहते है जिसमे जल के प्रतिबंधक तत्वों (जल को रोकने वाले तत्त्व) के विनाश का परिणाम प्रतीत होता है। नभस्य मास को भाद्रपद मास भी कहते है। इसका भाद्रपद नाम चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार है। जिस मास की पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा ” उत्तरा भाद्रपद ” नक्षत्र पर होता है उसे भाद्रपद मास कहलाता है।

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