जो मनुष्य आपके साथ जैसा बर्ताव करें, उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिये – यही नीति है। कपट का आचरण करनेवाले के साथ कपटपूर्ण बर्ताव करना चाहिये; और अच्छा व्यवहार करने वाले के साथ साधु-व्यवहार से ही पेश आना चाहिये।
जो अपने लिये प्रतिकूल जान पड़े, उसे दूसरों के लिये भी न करें। थोड़े में धर्म का यही स्वरूप है।
किसी ऐसे व्यक्ति पर भरोसा ना करे जो कि विश्वसनीय नहीं है। परन्तु जो बहुत विश्वसनीय है उस पर भी आँख बंद करके भरोसा न करे, क्योंकि जब ऐसे व्यक्ति भरोसा तोड़ते है तो बहुत ज्यादा नुकसान होता है।
न्याय और मेहनत से कमाये गये धन के ये दो दुरूपयोग कहे गये है – प्रथम कुपात्र को दान देना और दूसरा सुपात्र को जरुरत पड़ने पर भी दान न देना।
ज्ञानी लोगों की क्या पहचान होती है?
ज्ञानी लोग किसी भी विषय को शीघ्र समझ लेते है, लेकिन उसे धैर्यपूर्वक देर तक सुनते रहते है। किसी भी कार्य को कर्त्तव्य समझ कर करते है, कामना समझकर नहीं और व्यर्थ किसी विषय में बात नहीं करते।
ज्ञानीजन श्रेष्ठ कार्य करते है, कलयाणकारी व राज्य की उन्नति के कार्य करते है। ऐसे लोग अपने हितैषी में दोष नहीं निकालते है।
संसार में उन्नति के अभिलाषी व्यक्तियों को नींद, ऊंघ, भय, क्रोध, आलस्य तथा देर से काम करने की आदत – इन छह दुर्गुणों को सदा के लिए त्याग देना चाहिये।
क्षमा
क्षमाशील व्यक्तियों में क्षमा करने का गुण होता है,लेकिन कुछ लोग इसे उसके अवगुण की तरह देखते है जो कि अनुचित है।
व्यक्ति को कभी भी सच्चाई, दानशीलता, निरालस्य, द्वेषहीनता, क्षमाशीलता और धैर्य – इन छः गुणों का त्याग नहीं करना चाहिये।
क्षमा तो वीरो का आभूषण होता है, क्षमाशीलता कमजोर व्यक्ति को भी बलवान बना देती है और वीरों का तो यह भूषण ही है।
दो प्रकार के व्यक्तियों को स्वर्ग से भी ऊपर स्थान प्राप्त होता है – प्रथम वो जो शक्तिशाली होने पर भी क्षमाशील हो और दूसरे वो जो निर्धन होने पर भी दानशील हो।
विदुर नीति के अनुसार मूर्खों की क्या पहचान होती है?
जो व्यक्ति अपना काम छोड़ कर दूसरों के काम में हाथ डालता है तथा मित्र के कहने पर उसके गलत कार्यों में उसका साथ देता है, वह मुर्ख कहलाता है।
जो व्यक्ति शत्रु से दोस्ती करता है तथा मित्रों और शुभचिन्तकों को दुःख देता है, उनसे द्वेष-ईर्ष्या करता है और सदैव बुरे कार्यों में लिप्त रहता है ऐसा व्यक्ति मुर्ख कहलाता है।
बिना पढ़े ही स्वयं को ज्ञानी समझ कर अहंकार करने वाला, दरिद्र होकर भी बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाने वाला तथा बैठे बिठाये ही धन पाने की कामने करने वाल मूर्ख कहलाता है।
वह व्यक्ति महामूर्ख कहलाता है जो अपने हितेषियों को त्याग देता है, अपने शत्रुओ को गले लगाता है और अपने से शक्तिशाली लोगों से शत्रुता रखता है।
वह व्यक्ति जो बिना आज्ञा लिए किसी के भी कक्ष में प्रवेश करता है, सलाह मांगे बिना अपनी बात थोपता है, अविश्वसनीय व्यक्ति पर भरोसा करता है, वह व्यक्ति मुर्ख होता है।
जो अपनी गलती को दूसरे की गलती बताकर स्वयं को बुद्धिमान दर्शाता है तथा अक्षम होते हुए भी क्रुद्ध होता है, वह व्यक्ति महामूर्ख कहलाता है।
जो व्यक्ति अनावश्यक कार्य करता है, सभी को संदेह की दृष्टि से देखता है, आवश्यक और शीघ्र करने वाले कार्य को विलम्ब से करता है, वह मूर्ख कहलाता है।