योगिनी एकादशी (आषाढ़ कृष्ण पक्ष) व्रत कथा

योगिनी एकादशी का व्रत वर्ष 2020 में 16 – 17 जून , मंगलवार – बुधवार को है। यह आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में आती है।

॥ अथ आषाढ़कृष्णैकादशी कथा ॥

युधिष्ठिर बोले – मैंने ज्येष्ठशुक्ला निर्जला एकादशी का माहात्म्य सुना; आषाढ कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? सो हे मधुसूदन ! कृपाकर वह मुझे सुनाइये।

श्रीकृष्ण बोले – हे राजन ! व्रतों में से उत्तम यह व्रत मैं तुमको कहता हूं। यह सब पापों का नाशक ओर भुक्ति मुक्ति का देनेवाला है। आषाढ कृष्ण पक्ष में योगिनी नाम की जो एकादशी है; सो हे नृपश्रेष्ठ ! वह बड़े – बड़े पातकों की नाशक है ओर संसार रूपी समुद्र में डूबते हुये मनुष्यों को सनातन से नौका के समान तारनेवाली है।

हे राजन्‌ ! यह योगिनी तीनों लोकों में मुख्य है । उसकी पापहारिणी कथा जो पुराणोंमें कही है, वह तुम्हें कहता हूं।

योगिनी एकादशी

अलकापुरी का स्वामी कुबेर शिवजी का भक्त था। उसका माली हेममाली नाम का एक यक्ष था। उसकी महासुन्दर विशालाक्षी नाम की स्त्री थी। वह उस पर आसक्त होने से सदा कामवश रहता था। वह शिवजी के पूजन के समय नित्य फूल लाया करता था। सो वहां एक दिन अपनी स्त्री का मुख देखकर उसपर मोहित हो गया। मानस सरोवर से फूल लाया और अपने घर में ही बैठा रहा ओर स्त्री के प्रेम में फंसकर वह कुबेर के घर नहीं जा सका।

हे राजा ! इधर कुबेर शिवालय में पूजन कर रहे थे, उन्हें फूलों की राह देखते देखते मध्यान्ह समय हो गया।

उधर हेममाली अपने घर स्त्री के साथ क्रीडा करने लगा; फिर देरी हो जाने के कारण कुबेर क्रोध से बोले अरे यक्षो ! दुष्ट हेममाली क्यों नहीं आया ?

और यक्ष बोले – हे महाराज ! वह तो अपने घर में अपनी स्त्री पर आसक्त होकर उसके साथ यथेच्छ क्रीडा कर रहा है। उनका वचन सुनकर कुबेर बहुत ही क्रोधित हुये ओर उस फूल लाने वाले माली को शीघ्र बुठाया ओर वह भी देर हुई जान भय से व्याकुल नेत्र किये हुए आया और कुबेर के सामने हाथ जोडकर खड़ा हो गया; उसे देखकर कुबेर क्रुद्ध हुये और कोप से उनके लाल नेत्र हो गये।

कोप के मारे उनके होठ काँपने लगे और फिर उन्होंने उस हेममाली को श्राप दे दिया। कुबेर बोले – हे पापी दुर्बुद्धि ! तूने देवता के काम में देर कर दी इसलिये तू कोढ़ी हो जा ओर अपनी स्त्री से सदा बिछड़ जा और इस स्थान से गिरकर नीच स्थान में चला जा।

कुबेर ने ऐसा श्राप दिया तो वह उस स्थान से गिरा और शरीर में चित्र कोढ़ निकलने से वह बड़ा दुखी होने लगा।

उसे भयानक वन में न तो अन्न मिला, न जल मिला, न तो उसने दिन में सुख पाया ओर न ही रात में उसको नींद आई। छाया में जाने से उसके शरीर में पीड़ा होने लगी और धूप में जाने से जलन होने लगी; परन्तु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसकी स्मृति नहीं गई।

पातकयुक्त होने पर भी अपने पूर्वजन्म के कर्म को स्मरण करता हुआ वह घूमता घूमता पर्वतों में उत्तम ऐसे हिमवान्‌ पर्वत पर गया और वहाँ उसने बड़े तपस्वी मुनिश्रेष्ठ मार्केण्डेयजी का दर्शन किया। हे राजन्‌ ! जिनकी आयु ब्रह्मा के सात दिन की थी। वह उन ऋषि के आश्रम में गया कि जो ब्रह्मा की सभा के समान था। और उस पापी ने दूर से ही उनके चरणों को प्रणाम किया।

इन श्रेष्ठ मुनि मार्केण्डेयजी ने उसे कुष्ठी देख परोपकार करने के लिये उसे पास बुलाकर कहा। मार्केण्डेयजी पूछने लगे – तेरे यह कुष्ठ किस कारण से हो गया ? और तू ऐसा बुरा क्यों हो रहा है। जब बुद्धिमान मार्कण्डेयजी ने यह पूछा तो वह बोला। हेममाली कहने लगा – मैं यक्षराज का सेवक हूं; हेममाली मेरा नाम है ।

हे मुनिराज मैं मानससरोवर से पुष्पों को नित्य तोड़ लाकर कुबेर को शिवपूजन के समय दिया करता था। पर एक दिन मुझसे देर हो गई। एक दिन मेरे चित्त में कामपीड़ा हुई और मैं अपनी स्त्री के सुख में लीन हो गया।

तो हे मुनिराज ! कुबेर ने क्रोधयुक्त होकर मुझे श्राप दे दिया, उससे में कुष्ठी हो गया ओर स्त्री से भी मेरा वियोग हो गया। अब अपने किसी शुभ कर्म के प्रभाव से आपके पास आ पहुँचा हूँ। सज्जनों के चित्त स्वभाव से ही परोपकारी हुआ करते हैं।

सो हे मुनिश्रेष्ठ ! यह समझकर इस पापी को शिक्षा दीजिये।

मार्कण्डेयजी बोले – तूने यहाँ सत्य सत्य कहा और झूठ नहीं बोला इसलिये मैं तुझे एक शुभ करने वाले व्रत का उपदेश करूँगा।

वो बोले तू आषाढ कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत कर। इस व्रत के पुण्य से तू कुष्ठ से अच्छा हो जायेगा इसमें संदेह नहीं है। मुनिका यह वचन सुन उसने धरती में गिर उनको प्रणाम किया, ओर जब मुनि ने उसे उठाया तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ।

ऋषि के उपदेश से उसने उस उत्तम व्रत को किया ओर उस व्रत के प्रभाव से वह देवरूप हो गया। उसका स्त्री से भी मिलाप हो गया ओर वह उत्तम सुख भोगने लगा। हे नृपश्रेष्ठ ! इस योगिनी एकादशी का व्रत ऐसा उत्तम कहा है। अट्ठासी हजार ब्राह्मणों के भोजन कराने से जो फल मिलता है मनुष्य वही फल इस योगिनी के व्रत करने से पाता है। यह बड़े बड़े पापों को नाश करनेवाली और बड़े पुण्यफल के देनेवाली है। इसकी कथा पढ़ने सुनने से मनुष्य को हजार गौदान का फल होता है।

॥ इति श्रीआषाढकृष्ण योगिनी एकादशीमाहात्म्य॑ संपूर्णम्‌ ॥

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