देवशयनी एकादशी का व्रत वर्ष 2020 में 01 जुलाई, बुधवार को है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आती है।
॥ अथ आषाढ़शुक्लैकादशी कथा ॥
युधिष्ठिर बोले – हे कृष्ण भगवन् ! आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? उसमें किस देवताका पूजन होता है ? ओर उसके करने की क्या विधि है? सो मुझसे कहिये।
श्रीकृष्णजी बोले – हे राजन् ! इसे ब्रह्माजी ने महात्मा नारदजी के लिये कहा था; सो में इस आश्चर्य करने वाली कथा को तुमसे कहता हूँ।
नारदजी ने पूछा – है पिता ! प्रसन्न होकर कहिये कि भगवानके आराधना के लिये आषाढशुक्ल में जो एकादशी होती है उसका क्या नाम है?
ब्रह्माजी बोले – हे मुनिश्रेष्ठ तुम विष्णुके भक्त हो हे कलिप्रिय ! तुमने अच्छी बात पूछी; इस एकांदशीसे बढ़कर कोई पवित्र नहीं हे, इस एकादशी का व्रत पवित्र, पापनाशक और सब कामों का देनेवाला है, संसार में जिन्होंने इसे नहीं किया वे मनुष्य नरकगामी हैं।
आषाढ़शुक्ला एकादशी का नाम पद्मा है।
भगवान के प्रीत्यर्थ इस उत्तम व्रत को करना चाहिये। मै तुमको प्राचीन समय की एक सुन्दर कथा कहता हूँ कि जिसके सुनने से ही महापाप का नाश हो जाता है।
सूर्यवंश में मांधाता नाम एक राजर्षि था; वह चक्रवर्ती, सत्यप्रातज्ञ और बड़ा प्रतापी था। वह अपनी प्रजा को अपने पुत्रों के समान धर्म से पालन करता था । उसके राज्य में अकाल, आधि और व्याधि ये कुछ नहीं होते थे; उसकी प्रजा शत्रुरहित और धनधान्य से पूर्ण थी, और उस राजाके भंडार में अन्याय से उपार्जित धन नहीं आता था। उसको इस तरह राज्य करते करते बहुतसे वर्ष बीत गये ।
फिर कोई एक समय पापकर्म के फल से उसके देश में तीन वर्ष तक बारिश नहीं हुईं उसकी प्रजा भूखके मारे दु:खी होकर बड़ी डामाडोल हुई। और उसके देश में अन्न न होने के कारण प्रजा इतनी दुःखी होने से देश में स्वाहा, स्वधा, वष्ट्रकार और वेदाध्ययन वगैरह धार्मिक कृत्य का नामोनिशान भी नहीं रहा।
फिर प्रजा ने राजा के पास जाकर कहा हे महाराज ! प्रजा का हितकारी वचन सुनो। पंडितों ने पुराणों में जलका नाम नारा कहा है, और वह भगवान का अयन याने स्थान है; इसीलिये भगवान को नारायण कहते हैं। वे मेघरूपी विष्णु भगवान् सर्वव्यापी हैं; वे ही मेघ बरसाते हैं कि जिससे अन्न होता है और उससे प्रजा जीवन गुजारती है। हे महाराज ! अपने राज्य में उसी अन्न के अभावसे प्रजाका नाश हो रहा है,
हे नृपश्रेष्ठ ! ऐसा कोई पृण्यकृत्य करो कि जिससे देश में कुशल क्षेम होय।
राजा बोले- तुमने सत्य कहा; इसमें कोई मिथ्या बात नहीं है। अन्न को ब्रह्ममय कहा हैं, और अन्न में ही सब कुछ है। अन्न से जीव होते हैं और अन्न से ही जगत् कायम हे; यही संसार में सुनते आये हैं; और यही पुराणों में भी विस्तारपूर्वक लिखा है। राजाके अपराध से प्रजा को पीड़ा होती है। मैं सदसद्विवेक बुद्धि से सोच रहा है तो भी मुझे अपना दोष नहीं दिखाई देता; तो भी में प्रजा के हित के लिये यत्न करूंगा ऐसी मति करके और बहुत सी सेना और द्रव्यादि जरूरी चीजें साथ लेकर तथा विधाता को प्रणाम कर गहरे जंगल में गया; और मुख्य मुनियों के तप से बढ़े हुये आश्रमों में विचरने लगा , तो राजा ने वहां ब्रह्मा के पुत्र आंगिरस ऋषि को देखा, कि जिनके तेज से सब दिशायें चमक रही हैं और दूसरे ब्रह्मा जैसे दिख पड़ते है है।
उनको देखकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और अपने वाहन से उतरकर उस जितेन्द्री राजा ने भक्तिभाव से हाथ जोड़ उनके चरणों में नमस्कार किया; मुनि ने स्वस्तिवाचनपूर्वक राजा को आशीर्वाद दिया ओर राजा के राज्य की और सेना, कोश आदि सातों अंगों की कुशल पूछी; राजाने अपनी कुशल कहकर मुनिसे कुशल पूछी; बाद मुनि ने राजा से आने का कारण पूछा और राजा ने उन श्रेष्ठ मुनि से अपने आने का कारण कहा।
राजा बोला – हे भगवन् ! धर्म से पृथ्वी का राज्य करनेपर भी बारिश नहीं हो रही हें; में इसका कारण नहीं जानता।
मैं इस संदेह को दूर करने के लिये आपके पास यहाँ आया हूं; योगक्षेम के लिये कोई विधान बताइये, और पीड़ित प्रजा को सुखी बनाइए।
ऋषि बोले – हे राजन् ! यह सतयुग सब युगोंमें उत्तम है; इसमें लोक वेद बहुत पढते हैं, ओर इसमें घर्म के भी चारों चरण हें; और इसमें ब्राह्मणों को छोड़ दूसरे लोग तपस्वी नहीं हैं; पर हे राजेन्द्र ! तुम्हारे देश में एक शूद्र तपस्या कर रहा है; उस अधर्म कार्य के करने से मेघ नहीं बरसता, उसको मारने का प्रयत्न करो कि जिससे पीड़ा मिट जाय।
राजा बोला – मैं उस तप करते हुए निरपराधी को नहीं मारूंगा; इस उपद्रव के दूर करने के लिये कोई धर्म का उपाय बताइये। ऋषि बोले – यदि ऐसा है, तो हे राजन ! तुम एकादशी का व्रत करो।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मा नाम से विख्यात है। भगवान विष्णु आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से 4 महीने तक शयन करते है, इसलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते है। उसके व्रत के प्रभाव से अवश्य वृष्टि होगी; यह सब सिद्धियों की देनेवाली और सब उपद्रवों की नाशक है। हे महाराज ! तुम कुटंब ओर प्रजा समेत इस व्रत को करो । राजा मुनिका यह वचन सुन घर आया और जब आषाढ़ का महीना आया तो चारों वर्णो की सब प्रजासहित राजा ने पद्मा एकादशी का व्रत किया
हे राजा युधिष्ठिर ! ऐसा करनेसे बड़ी बरीश हुई और पृथ्वी जल से भर गई एवं अन्न से भी परिपूर्ण हो गई। और भगवानके प्रसाद से मनुष्य सुखी हुये इसलिये देवशयनी एकादशी का उत्तम व्रत करना चाहिये। यह व्रत लोगों को भुक्ति मुक्ति और सुख का देनेवाला है। ओर इस देवशयनी एकादशी की कथा पढ़ने सुनने से मनुष्य सब॑ पापोंसे छूट जाता है।