कामिका एकादशी का व्रत वर्ष 2020 में 16 अगस्त, गुरुवार को है। यह श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में आती है।
॥ अथ श्रावणकृष्णैकादशी कथा ॥
युधिष्ठिर बोले – हे भगवन् ! आषाढ़शुक्ल पक्ष में जो देवशयन का व्रत होता है वह पुराण में कहा है, जो मेंने पहले भी विस्तारपूर्वक सुन रखा है। हे गोविंद ! हे वासुदेव ! श्रावणकृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है उसका क्या नाम है ? सो कहिये, आपको नमस्कार हे। श्रीकृष्णजी बोले – हे राजन् ! मैं उस पापनाशक व्रत को तुमसे कहूंगा, कि जिसे नारदजी ने पूछा था, और ब्रह्माजी ने कहा था; हे प्यारे युधिष्ठिर ! उसी उत्तम व्रत को में तुमसे कहता हूं ।
नारदजी बोले – हे भगवन् ! हे कमलासन ! में आपसे यह पूछा चाहता हूं कि, हे स्वामी ! श्रावण कृष्ण पक्ष एकादशी का क्या नाम है ? उसका मुख्य देवता कौन है ! ओर उसकी क्या विधि ओर क्या पुण्य है ! सो कहिये उनका ऐसा वचन सुनकर ब्रह्माजी बोले । ब्रह्माजी कहने लगे – हे नारद ! सुनो, मैं लोगों के कल्याणार्थ तुमसे कहता हूँ।
श्रावण कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है, उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल होता है।
उस दिन जो कोई शंख, चक्र और गदा धारण किये हुए श्रीधरका पूजन करता है; कि जो हरि, विष्णु, माधव ओर मधुसूदन भी कहलाते हैं। और जो कोई उनका ध्यान और यज्ञ करता है; उसका फल सुनो, कि गंगा, काशी, नेमिषारण्य , पुष्कर इनमें स्नानादिक करनेसे वह फल नहीं मिलता, कि जो फल भगवान के पूजन से मिलता है; केदारनाथ में ओर सूर्यग्रहणके समय कुरुक्षेत्र में स्नान दान करने से वह फल नहीं मिलता, कि जो श्रीकृष्ण के पूजनसे मिलता हे। और जब सिंहका बृहस्पति हो तब गोदावरी में और व्यतीपात हो तब गंडकी नदी में स्नान से वह फल नहीं मिलता, जो कृष्णजी की पूजन से मिलता है।
समुद्र और वन से युक्त ऐसी भूमि का जो दान करता है उसका और जो कामिका का व्रत करता है इन दोनों का समान फल है। जो मनुष्य सामग्री समेत व्यायी हुई गौ का दान करता है, वही फल कामिका के व्रत करने वाला पाता है; जो उत्तम मनुष्य श्रावण में श्रीधर भगवान का पूजन करता है, उसने मानो सब देवता गंधर्व और उरग ओर पन्नग इन सबका पूजन कर लिया, इसलिये बड़े जतन से कामिका एकादशी के दिन पाप से डरनेवाले मनुष्यों को यथाशक्ति भगवान का पूजन करना चाहिये।
जो संसार-रूपी समुद्र में डूब रहे हैं और पापरूपी कीचड़ में फंस रहे हैं, उनके उद्धार के लिये कामिका का व्रत एक उत्तम उपाय है। इससे बढ़कर कोई पवित्र और पापनाश करनेवाला साधन नहीं है। हे नारद ! ऐसा जानना क्योंकि पूर्वकाल में भगवान ने इसे स्वयं ही कहा है, कि ब्रह्मविद्या पढ़नेवाले मनुष्यों को जो फल मिलता है। उससे बहुत बढ़कर कामिका के व्रत करनेसे मिला जानना ।
कामिका के व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करे; फिर न वह भयंकर यम को देखता है, ओर न अपनी दुर्गति देखता है; और कामिका के व्रत करने से न वह बुरी योनि में उत्पन्न होता है।
कामिका के व्रत करने से योगी लोगों ने कैवल्य मुक्ति को पाया हे। इसलिये जितेन्द्रियों को सब प्रकार से इसका व्रत करना चाहिये। जो मनुष्य तुलसी दल से भगवानका पूजन करता है, वह पापों से ऐसे लिप्त नहीं होता जैसे पानी से कमल। एक भार सुवर्ण और उससे चौगुनी चांदी इनके आभूषण दान करने से जो फल मिलता है वही फल तुलसी दल चढ़ाने से मिलता है।
रत्न, मोती, बैडूर्यमणि , मूंगा आदि से भले ही पूजो, परंतु भगवान् इनसे ऐसे प्रसन्न नहीं होते, कि जैसे तुलसी दल के चढ़ाने से होते हैं। जिसने तुलसी की मंजरी से भगवान का पूजन किया उसने जन्मभर किये हुए पाप का लेख मिटा दिया। जो दर्शन से सब पापों के समूह को नाश कर देती है, स्पर्श से शरीर को पवित्र करती है, नमस्कार से रोगों को दूर करती है, जल के सींचने से यम के भय को दूर करती है, और लगाने से श्रीकृष्ण भगवान के निकट वास कराती है और भगवान् के चरणों में चढ़ाने से मुक्ति देती है ऐसी तुलजी को नमस्कार है।
जो मनुष्य एकादशी के दिन रात को दीपक चढ़ाता है उसके पुण्य-पाप के लिखने वाला चित्रगुप्त भी नहीं जानता है। जिस मनुष्यका दीपक एकादशी के दिन भगवान के सामने जलता है उसके पितर स्वर्ग में बैठे अमतसे तप्त होते हैं। घृत या तिल के तेल का दीपक जलाने से मनुष्य सैंकड़ो करोंड़ो दीपकों के साथ सूर्य लोक को जाता हे। यह मेंने तुमको कामिका एकादशी का माहात्म्य कहा। इसलिये मनुष्यों को इसे करना चाहिये यह एकादशी सब पापों के हरनेवाली है। ब्रह्महत्या ओर भ्रूणहत्या के नाश करने वाली, स्वर्गस्थान और महापुण्य के देनेवाली है। मनुष्य श्रद्धापूर्वक इसका माहात्म्य सुनकर सब पापों से छूट विष्णुलोक को जाता है।