वासक राजा : दशामाता पर्व की कहानी

वासक राजा : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी

एक समय की बात है एक ब्राह्मण- ब्राह्मणी होते है। उनके कोई सन्तान नहीं होती है। ब्राह्मणी होली के बाद से दस दिनों तक दशामाता की कहानियाँ सुनती थी और दसवें दिन दशामाता की पूजा करती थी।

दशामाता की कृपा से उसके एक लड़की हुयी। कुछ समय पश्चात् ब्राह्मणी मर गयी। ब्राह्मण बस्ती में भिक्षा मांगने जाता था। वह अपनी बेटी को बोलकर जाया करता था कि खिचड़ी बना लेना, सब्जी बना लेना। उनके घर के सामने एक कुम्हारीन रहती थी। कुम्हारीन ने सोचा कि इस ब्राह्मण के पत्नी नहीं है तो में इससे शादी कर लू। इसलिए कुम्हारीन क्या करती कि ब्राह्मण की बेटी सब्जी, खिचड़ी जो भी बनाया करती उसमें कुम्हारीन कंकर डाल कर चली जाया करती ।

ब्राह्मण जब भोजन करने बैठता तो उसके मुँह में कंकर आते।

वह अपनी बेटी को बोलता कि बेटी अच्छी तरह से साफ़ नहीं करती क्या, मुँह में कंकर आते है। उसकी बेटी बोलती है पिताजी मैं तो अच्छी तरह से साफ़ करके ही बनाती हूँ। एक दिन जब ब्राह्मण के घर भोजन बन रहा था तो वह दरवाजे के पीछे छिप गया। वह क्या देखता है की उसके घर खाना बनने के बाद कुम्हारीन आयी और खिचड़ी में कंकर डाल कर जाने लगी। वह जैसे हि जाने लगी ब्राह्मण ने उसका पकड़ लिया और उससे पूछा की तू प्रतिदिन हमारे भोजन में कंकर क्यों डालती है ?

कुम्हारीन बोलती है कि मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ।

ब्राह्मण कहता है कि मैं तो ब्राह्मण हूँ और तू कुम्हारीन है,शादी कैसे हो सकती है। यह शादी नहीं हो सकती है। परन्तु कुम्हारीन तो जबरदस्ती ब्राह्मण के घर आकर रहने लग गयी। कुम्हारीन के एक काणी लड़की थी। ब्राह्मण की लड़की को कुम्हारीन खाने को पूरा नहीं देती थी,उसको मारती थी और उससे बहुत काम करवाती और बोलती थी कि सारे दिन बैठी रहती है कुछ काम कर।

और वह ब्राह्मण की लड़की को पास पड़ोस के गाय भैंस को जंगल में चराने भेज दिया करती। कुम्हारीन गोबर की रोटी बनाकर और उस पर थोड़ा सा आटा लगा देती और ये रोटी ब्राह्मण की लड़की को खाने के लिए देती थी। तो फिर वह लड़की भूखे मरती थी।

वह लड़की दशामाता की दी हुयी थी तो एक दिन जब उधर से दशामाता पधारे तो उन्होंने उसकी ऐसी हालत देखी तो उन्हें उस पर बहुत दया आ गयी।

उन्होंने उसे एक डंडा दिया और बोले की ये गाय के सींग पे मारना,तेरे खाना और पानी दोनों आ जायेगा। ब्राह्मण की लड़की प्रतिदिन जंगल में जाती और फिर खाना खा लेती और पानी पी लेती। इस प्रकार से करते करते ब्राह्मण की लड़की की हालत वापिस सुधर गयी।

ब्राह्मण की लड़की की सुधरी हुयी हालत देख कर कुम्हारीन को बहुत मिर्ची लगी। एक दिन सौतेली माँ ने अपनी काणी बेटी को भी उसके साथ जंगल भेजा। सौतेली माँ ने काणी को बोला कि तू देख कर आना कि इसको कौन खाना खिलता है जो इसकी हालत इतनी अच्छी हो गयी। जंगल में काणी ने सब देख लिया। काणी आकर बताती है माँ इसके पास एक डंडा है , उसको गाय के एक सींग पर मारती है तो खाना आ जाता है और दूसरे सींग पर मारती है तो पानी आ जाता है।

सौतेली माँ उस डंडे को चूल्हे में जला देती है। अब वापिस वह भूखे मरने लग गयी।

ब्राह्मण की लड़की की सुधरी हुयी हालत देख कर कुम्हारीन को बहुत मिर्ची लगी। एक दिन सौतेली माँ ने अपनी काणी बेटी को भी उसके साथ जंगल भेजा। सौतेली माँ ने काणी को बोला कि तू देख कर आना कि इसको कौन खाना खिलता है जो इसकी हालत इतनी अच्छी हो गयी। जंगल में काणी ने सब देख लिया। काणी आकर बताती है माँ इसके पास एक डंडा है , उसको गाय के एक सींग पर मारती है तो खाना आ जाता है और दूसरे सींग पर मारती है तो पानी आ जाता है। सौतेली माँ उस डंडे को चूल्हे में जला देती है। अब वापिस वह भूखे मरने लग गयी।

एक दिन ब्राह्मण की लड़की जंगल में बैठी हुयी थी और एक साँप (वासक राजा) उसके पास से जा रहा था। साँप उसे बोला की बेटा तू डरना मत, मुझे सपेरा पकड़ने आ रहा है, में यहाँ कुंडली मारकर बैठ जाता हूँ, तू मेरे ऊपर तेरी साड़ी ढक देना। सपेरा जब उधर आया तो उसने लड़की से पूछा कि इधर कोई साँप आया क्या। लड़की ने कहा कि इधर तो साँप नहीं आया।

साँप लड़की से बहुत खुश हो गया,उसने कहा कि तेरे ऊपर कभी कोई मुसीबत आये तो मुझे याद करना।

थोड़े ही दिनों में वह भूख के मारे बहुत ही कमजोर हो गयी। दशामाता ने सोचा कि इस बार ऐसी वस्तु देती हूँ इसको जो हमेशा इसके पास रहे नहीं तो यह भूख से मर जाएगी। तो इस बार दशामाता ने उसको वरदान दिया कि एक मुट्ठी खोलेगी तो खाना आ जायेगा और दूसरी मुट्ठी खोलेगी तो पानी आ जायेगा। एक दिन वह चैत्र महीने की धुप में गाय चरा रही थी। धूप और थकान के मारे जब उसने खाना खाया तो उसे वहीं नींद आ गयी। और वह मुट्ठी बंद करना भूल गयी तो उसके पास खाने का ढ़ेर हो गया और पानी का धोरा बहने लगा।

उसी समय एक राजा वन में शिकार खेलने आये। उन्हें बहुत तेज प्यास लगी थी। वो ठंडा पानी राजा के पास से भी बह रहा था। राजा ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई। राजा ने नौकरो को भेजा कि इस उजाड़ वन में कोई कुआ बावड़ी नदी कुछ भी नहीं है तो ऐसा ठंडा पानी कहा से आ रहा है, पता करो। नौकर जब देखने गए तो क्या देखते है कि एक लड़की सो रही है,उसके पास खाने का ढेर पड़ा है और उसके एक से पानी आ रहा है।

घोड़े की पैरो की आवाज़ से वह जाग गयी और मुट्ठी बंद कर दी। उसके मुट्ठी बंद करते ही वो सब खाना पानी गायब हो गया।

राजा ने सोचा कि ऐसी लड़की से शादी करनी चाहिए। लड़की से इस बारें में पूछा तो उसने कहा कि मैं नहीं जानती, मेरे पिताजी करेंगे। राजा ने सेवकों को उसके पिताजी के पास भेजा कि इसके पिताजी को बोलना कि तुम्हारे को जितने रूपये पैसे चाहिए हो वो ले लो और तुम्हारी कन्या की शादी राजा से करा दो। ब्राह्मण ने अपनी लड़की की शादी राजा से करा दी।

शादी करके वह राजा के रावले में गयी। जब वह परिण्डे जाती तो पानी भर जाता। रसोई में जाती तो तरह तरह का भोजन तैयार हो जाता। उसके आने से पूरा रनवास खुश हो गया। सब बोलते हमारे कितने अच्छे रानी सा आये कि हमारे सब काम हो जाते। नौ महीने पश्चात् उसके एक लड़का हुआ। लड़का होने के कुछ दिनों पश्चात् उस सौतेली माँ ने ब्राह्मण को को उसकी बेटी को घर लाने भेजा कि शादी कराने के बाद भी नहीं लाये, अब तो लड़का हो गया। लोग ताने मारते है कि बेटी को पीयर नहीं लाये। सो आप उसे लेकर आओ तो फिर ब्राह्मण अपनी बेटी को लेने गया। राजा ने अपनी रानी को भेज दिया।

इधर सौतेली माँ ने अपनी बेटी को समझा दिया कि वो आये तो उसको बोलना कि जीजी बाई आप थक गए होंगे, चलो अपन कुए पर नहाने चलते है।

और उसके कपड़े जैवर खुलवा देना ये बोलकर की ये ख़राब हो जायेंगे और बोलना कि पुराने कपड़े पहन कर नहा लो,नहा कर फिर से अच्छे कपड़े पहन लेना। जैसे ही वह कुँए में उतरे तू उसे कुँए में धक्का दे देना जो वह पानी में डूब कर मर जाएगी। और उसके जैवर कपड़े तू पहन लेना। जैसे ही वह कुए में उतरी सौतेली बहन ने उसे धक्का दे दिया जो वह गिर गई।

गिरते ही उसने वासक राजा को याद किया “है वासक राजा मेरी रक्षा करना ” उसके प्रार्थना करते ही वासक राजा (वासुकी) आये और उसे झेल लिया, डूबने नहीं दिया उसे। नाग के फन पर बिठा कर बिठा कर नागलोक ले गए और कहा कि यहाँ पर सभी तरह के नाग रहते है। उन नागों में कई नाग तो नौ फनवाले है। सो तू जाकर बोलना, दोदोभाईसा नमस्कार,दादोभाईसा नमस्कार। नागों ने सोचा चलो अपने भी मृत्युलोक से एक बहन मिल गयी।

वह प्रतिदिन नागों के लिए कढ़ाई में ढेर सारा दूध गरम करती फिर दूध ठंडा करती और एक घंटी बजाती। घंटी बजते ही सभी नाग आकर दूध पी लेते।

एक दिन रानी के सिर से घंटी हिल गयी। उस समय दूध गरम था। नाग आये,उन्होंने पिया तो उन सभी की जीभ जल गयी। नागों ने सोचा कि आज इसने हमारी जीभ जलायी आज शाम हम इसको खा जाएंगे। वासक राजा को पता चला तो उन्होंने रानी से कहा कि बेटा आज ऐसे बोलना की “आवो मारे खाण्डिया बाण्डीया वीर, वीर पैरावे दखनी (बेशकीमती कपड़ा ) रो चीर, चीर फाटे चड़के, वीर फरे दड़के। ” नागो ने सोचा अपनी बहन तो अच्छा आशीर्वाद दे रही है,आज इसको नहीं खाएंगे।

उधर राजा अपनी रानी को लेने जब ब्राह्मण के घर गए तो कुम्हारीन ने रानी के कपड़े और जैवर पहना कर काणी को राजा के साथ भेज दिया। अब वह घूँघट नहीं हटाती,कहीं रावले में कोई उसकी शक्ल देख ना ले। दसियों ने उसे कहा रानीसा पण्डेरे पधारो तो उसने कहा क्या करू पानी भरू। रानीसा रसोई में पधारो तो उसने कहा क्या करू खाना बनाऊ।

सब कहने लगे कि ये तो पहले वाले रानीसा नहीं है।

राजा ने कहा कि एक गुणती सिलाकर एक तरफ इस काणी को भरना और दूसरी तरफ बड़े बड़े पत्थर भर कर काले बैल के ऊपर रख कर इसके घर पर नीचे इसको डालकर ऊपर पत्थर दाल देना। सेवकों ने पूछा कि फलां ब्राह्मण का घर कौनसा है ? सेवक उसके घर पहुँच कर बोले यहाँ डालो,यहाँ डालो। कुम्हारीन तो बहुत खुश हो गयी कि मेरी बेटी ने जाते ही मेरे लिए खूब माल भेजा है। परन्तु जैसे ही उसने खोला उसमें से बेटी निकली। बेटी को देखते ही वो बोली “ऐ बेटी काणी, तू तो कहीं नहीं समायी। ” काणी बोली कि माँ तूने मेरे हाथ पैर क्यों तुड़वाये।

जब दिवाली का त्यौहार तब वह बहुत उदास बैठी थी। उसको उदास देखकर वासक राजा ने पूछा कि बेटा क्या बात है तू उदास क्यों है। वह बोली कि दिवाली का त्यौहार आया कुँवर को कौन तैयार करे। वासक राजा ने कहा कि मैं पाईप पर लटक जाऊंगा और तू कमरे में चली जाना। वह कमरे में गयी, कुंवर को दूध पिलाया, वासक राजा ने नये कड़े और कपड़े दिए वो कुँवर को पहनाये। उसके काजल लगाया और दूध पिलाकर आ गयी। जब रानी वहाँ गयी थी तब राजा को नींद आ गयी थी। राजा ने सुबह देखा कि कुँवर तो खेल रहा है, नए कड़े और कपड़े पहने हुए है।

राजा यह देखकर बहुत खुश हुआ की इसका मतलब रानी कहीं न कहीं जरूर है।

होली पर भी कुँवर के कड़े, कण्ठी, पीले कपड़े सिलाकर ले जाने लगे। उधर राजा ने भी सोचा कि होली पर भी रानी जरूर आयेगी। राजा अंगुली पर चीरा लगाकर उसमें नमक मिर्ची लगाकर बैठ गए ताकी उन्हें नींद नहीं आये। रानी आयी। राजा बोले कि रानी आपने मेरे साथ धोखा करा। रानी बोली कि आपने धोखा दिया। मैने आपको मना करा था कि मुझे मत भेजना पीयर,वो मेरी सौतेली माँ है, फिर भी आपने मुझे भेज दिया।

राजा बोलता है कि अब यहीं रुको रानी। रानी कहती मेरे साथ मेरे पिताजी है, वो नाग है अभी आपको खा जायेंगे। आप बोलना कि ससुरजी सा खम्मा घणी,खम्मा घणी। वासक राजा बोले कि जीवो जमाई सा,जीवो जमाई सा। वासक राजा राजा को को भी अपने साथ नागलोक ले गये।

थोड़े दिन नागलोक रहने के बाद राजा वासक राजा से कहते है कि अब आप रानी को मेरे साथ भेजने की कृपा करें।

वासक राजा कहते है कि यह तो मेरी बेटी जैसी है। जैसे बेटी की विदाई करते है वैसे ही सब डच डायचा,हाथी, घोड़े लाव लश्कर के साथ वासक राजा रानी की विदाई करते है। राजा रानी महलों में आ जाते है।

कुम्हारीन को जब पता चलता है कि रानी अभी मरी नहीं है तो वह ब्राह्मण को वापिस उसे लेने के लिए भेजती है। वह ब्राह्मण से कहती है कि बेटी की बहुत याद आ रही है सो आप उसे लेकर आओ और वह साथ में जहर के लड्डू बांध देती है कि लड्डू खायेगी तो मर जाएगी। राजा तो पहले की सब बात भूल जाते है और रानी को ब्राह्मण के साथ वापिस भेज देते है। दास – दासी और रनवास वाले सब परेशान हो जाते है। इस बार उस सौतेली माँ ने पिंजरा बनवाया। वह काणी को कहती है कि जब अच्छे गहरे पानी में जाये तब तू रस्सी छोड़ देना ताकि वह बच न सके।

रानी अपने पीयर आ जाती है। काणी बोलती है कि आओ जीजी बाईसा, चलो अपन नहाने चलते है।

इस बार अपन नदी पर नहाने जायेंगे ताकि गिरने का डर नहीं रहे। यह पिंजरा भी बनवाया है जो आप कही नहीं गिरोगे। जैवर और पुराने कपड़े उतार दो और ये पुराने कपडे पहन लो। जब थोड़ी दूर पिंजरा गया तो काणी ने यह कहकर रस्सी छोड़ दी कि यहाँ पानी अच्छा गहरा है। रानी के तो दशामाता इष्ट था जो लकड़ी का पिंजरा था जो वह सोने का हो गया। अब वो पिंजरा बहता बहता बहुत दूर तक चला गया।

एक शहर आया, वहाँ नदी के पास ही राजा का महल था। वह राजा नदी की तरफ ही देख रहा था। उसने कीरो को बोला कि वो नदी में कुछ चमकीला बह रहा है, उसे निकाल कर लाओ। उसके अंदर जो है वो मेरा है, बाहर वाला तुम्हारा है। वो लेकर आये। उस राजा ने अपनी रानी से कहा कि मेरे बहन लाया हूँ। उसके तो दशामाता का वरदान था, तो उस राजा के वह भी जब वह रसोई में जाती तो खाना बन जाता और परिण्डे जाती तो पानी भर जाता।

सब रनवास वाले तो बहुत खुश हो गए कि राजा के बहन तो अच्छी आयी,कुछ काम नहीं करना पड़ता।

उधर वो राजा रानी को लेने गए तो कुम्हारीन ने वापिस काणी को रानी के कपडे व जैवर पहना कर भेज दिया। अब वह काणी बोलती नहीं थी, तो राजा ने सोचा कि रानी नाराज़ हो रही होगी। राजा ने जब उसकी शक्ल देखी तो बोला कि यह तो वही काणी कुम्हारीन है। राजा ने वापिस गुणती मंगवा कर भेज दिया और सेवकों को बोला कि इस बार इतने बड़े पत्थर इस पर पटकना कि यह जीवित नहीं बचे। फिर काणी कुम्हारीन को नीचे डालकर ऊपर बड़े पत्थर डाले।

काणी कहती है ऐ माँ तुझे धन भाता है पर मेरी क्यों हड्डियाँ तुड़वाती है। कुम्हारीन बोलती है बेटी काणी तू कहीं नहीं समाणी।

राजा ने सोचा कि रानी तो अब जीवित नहीं होगी तो उसने सन्यास ले लिया। राजा अपने शहर से निकल गये। वो अलग अलग जगह जाते,सबके दुःख सुख की बात सुनते और समाधान करते। एक दिन घूमते घूमते राजा उसी शहर में पहुंचे की जहाँ रानी रह रही थी। राजा एक आश्रम में बैठ गए और जो भी दुखी लोग उनके पास आते, उनके दुखो का समाधान निकलते। सब लोग कहते कि कितने अच्छे साधु बाबा हमारे शहर में आये। सब लोग अपना दुःख लेकर आश्रम में जाने लगे। उस शहर के राजा के कानो तक भी यह बात पहुंची। राजा भी आश्रम में गये। अपनी बहन को भी जबरदस्ती ले गये। रानी ने मना कर दिया कि मुझे कुछ नहीं बताना।

साधु ने पूछा क्या परेशानी है बताओ। रानी बोलती है कि मेरी मुसीबतों की तो गिनती ही नहीं है।

अनगिनत परेशानियां झेली। छोटी थी तब माँ मर गयी, सौतेली माँ आयी, वो मारती पीटती थी, खाने को नहीं देती थी। मेरे पिताजी ने मेरी राजा से शादी करा दी। रानी पूरी बात बताने लगी। बताते बताते रोने लग गयी। साधु ने कहा वा बस अब मैं सब समझ गया। वह रानी से कहता है कि आपके कारण ही मेने सन्यास लिया। उसने राजा से कहा कि आपकी बहन को हमारे साथ भेजने की कृपा करें। राजा बोले ऐसे कैसे भेजे ये तो हमारी प्यारी बहन है। हमारी बहन की विदाई तो हम ठाट बाट से करेंगे। राजा ठाट बाट से अपनी बहन की विदाई करते है। राजा रानी अपने महलों में आते है और सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते है।

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *