कीड़ी ने कण न हाथी ने मण : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी
सूर्य भगवान प्रतिदिन नगरी में पधारते है और सभी जीवों का पालन करते है। राणादे सूर्य नारायण से पूछते है कि सुबह सवेरे आप धरतीलोक चले जाते है और शाम होते ही सूर्यलोक पधारते हो। पुरे दिन आप धरती लोक में क्या करते हो। सूर्यनारायण कहते है कि मैं सबका पालन पोषण करने जाता हूँ। कीड़ी (चींटी) को कण देता हूँ और हाथी को मण देता हूँ।
राणादे बोलते है कि क्या सबको खाने को देते हो, कोई तो बच ही जाता होगा।
सूर्यनारायण फरमाते है कि कोई नहीं बचता है। राणादे वापिस बोलते है किसी को बाकी नई रखते ? सूर्यनारायण बोलते है की किसी को भी भूखा नहीं रखता हूँ। भूखा उठता है पर कोई भी भूखा सोता नहीं है।
अगले दिन राणा दे नहा कर अपने कक्ष में पधारते है और एक चींटी को डिब्बी में बंद कर कर देते है। राणा दे प्रतिदिन नहा कर भगवान की पूजा किया करती थी और स्वयं के भी कुंकुम चावल लगाती थी। उस दिन भी उसने कुंकुम चावल की बिंदी लगायी होती है। जब राणा दे डिब्बी बंद कर रही होती है तब उनकी कुंकुम की बिंदी में जो चावल लगे हुए थे,उसमें से कुछ चावल के दाने उस डिब्बी में गिर गए। और स्नान किये हुए हाथ मुँह पे से जल की कुछ बुँदे उस डिब्बी में गिर जाती है। राणा दे को पता नहीं चला कि डिब्बी में चावल और पानी भी चला गया है। और राणादे डिब्बी बंद कर देती है।
राणादे सोचती है कि आज सूर्य नारायण को बताऊँगी कि देखो ये चींटी तो भूखी बैठी है।
जब शाम को सूर्यनारायण पधारते है तो राणादे बोलती है कि है सूर्य नारायण आप तो कह रहे थे की आप किसी को भूखा नहीं रहने देते। सूर्यनारायण बोलते है कि है सही में किसी को भूखा नहीं रहने देते। तो राणा दे बोलती है कि देखो तो ये चींटी जो डिब्बी में बंद है वो तो सुबह से भूखी है। यह सुनकर सूर्य भगवान राणा दे को कहते है कि आप डिब्बी तो खोलो। राणा दे जैसे ही डिब्बी खोलते है तो क्या देखते है कि चींटी के मुँह में चावल के कण है और डिब्बी में पानी की बुँदे भी पड़ी हुयी है।
राणा दे को अपनी आँखों पे विश्वास नहीं होता है। वो सोचते है कि हम तो यही सोच रहे थे कि चींटी भूखी होगी। डिब्बी बंद कर रही थी तब तो इसमें कुछ भी नहीं था। राणा दे हार मान लेते है और सूर्यनारायण भगवन से कहते है कि मैं मान गयी सभी की पूर्ति आप ही कर सकते हो।