गणपतिनाथ की कहानी : छोटा देखकर न्यौतिया

गणपतिनाथ की कहानी

गणपतिनाथ की कहानी “छोटा देखकर न्यौतिया” : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी

एक समय की बात है, एक सास बहु होती है। उनके थोड़ी गरीबी थी। वो सूत काटकर अपना जीवनयापन करती थी। सासूजी के गणपति का इष्ट था। सास प्रतिदिन सूत काटते हुए गणपति जी से प्रार्थना करती कि हे गणपतिनाथ मेरे सूत कट जायेगा तो मैं आपके नाम के किसी बालक को जिमाउंगी।

उसकी बहु कहती है कि सासुजी आप प्रतिदिन गणपतिनाथ से कहते हो कि मेरे सूत काट जायेगा तो आपके नाम के बालक को जिमाउंगी पर आप जिमाते तो नहीं हो जबकि प्रतिदिन आपके सूत कट जाता है। बहु की बात सुनकर सास कहती है कि वा ठीक है बहु आज किसी बालक को न्यौता दे देना। पर जो जो छोटा बालक हो उसे ही न्यौता देना, वैसे भी अपने घर में ज्यादा तो कुछ है नहीं।

गणपतिनाथ को भी पता चला तो वो तो एक छोटे से बालक का रूप धरकर चौक में खेलने लगे।

बहु ने उनको देखा और सोचा कि सासूजी ने कहा था कि छोटे बालक को ही बुलाना। यह बालक तो सबसे छोटा और सुन्दर भी है, इसी को न्यौता दे देती हूँ। बहु छोटे बालक बने गणेश जी से कहती है प्यारे से छोटे से भैया मेरे घर खाना खाने आओगे ? हा आऊंगा ना। बहु पूछती है तुम्हारा नाम क्या है। वो बोलते है मेरा नाम तो गणेश है। बहु पूछती है कहा रहते हो ? छोटा बालक कहता है मैं तो दिन भर यही खेलता रहता हूँ। बहु कहती है कि वा ठीक है ।

बहु खाना बनाकर बुलाने जाती है ओ छोटे से प्यारे से गणेश लाल जी खाना खाने चलो। बालक बने गणेश जी कहते है चलो भाभीसा। वो तो बहु के साथ साथ आये। उनके आसन लगाया, खाना परोसा। वो परोसा हुआ सारा खाना खा गए पर उनकी भूख नहीं मिटी। बहु ने पूछा और खाना परोसु। बालक ने कहा है परोसो। बहु ने और खाना परोसा। वो वापिस परोसा हुआ खाना भी खा गए।

बहु परोसती रही और वो खाते गये। फिर भी उनकी भूख नहीं मिटी।

ऐसे करते करते वो धीरे धीरे बना हुआ सारा खाना खा गए। वो तो और खाना मांगने लगे। बहु ने कहा गणेश लाल जी अब तो सब बर्तन खाली हो गए।

बालक ने कहा बर्तन धो कर लियाओ। मैं वही पी लूंगा। बालक ने पानी पिया, हाथ धोकर उठे,पैर पर हाथ फिराकर बोले कि आज तो आनंद ही आ गया। सास मन ही मन बोली है आनन्द आए क्यों नहीं,सारा खाना तो खा गए।

फिर बालक बने गणेश जी पूरे घर में घूमने लगे। और फिर बोले कि भाभी कोठियां खुली पड़ी है, इनके ढक्कन लगा दो। रसोई में भी बर्तन खुले पड़े है इनको भी ढक कर रख दो। और बोले कि मैं जहा बैठा था उस जगह भी खोद लेना।

सास को तो मन ही मन बहुत गुस्सा आया, गुस्से में ही वह बोली छोटा देख कर नुतिया पर पिण्डिया समेत पोला

इतना खाया कि दस्ते लग गयी होगी, इसीलिए उस जगह को खोदने के लिए बोल रहा है। गणेशलाल जी चले गये। सासूजी बोले बहु बहुत भूख लगी है, थोड़ा बहुत कुछ बना ले, वो बालक तो सारा खाना खा गया।

बहु जब रसोई गयी तो क्या देखती है कि सारे खली बर्तन गरम गरम ताजे ताजे पकवान से भरे हुए है और उनमें से बहुत अच्छी खुशबु आ रही है। अनाज की खली पड़ी कोठिया भी अनाज से भर गयी है। बहु ने सास को रसोई में बुलाया। सास ने भी सब कुछ देखा। फिर उन्होंने वहाँ भी खोदा जहाँ पर गणेशलाल जी ने बैठ कर खाना खाया था। वहाँ से बहुत सारा धन निकला। सास बहु तो बहुत ही खुश हो गयी। दोनों बोलने लगी की अपने तो गणपतिनाथ टूटमान हो गया, पूरा घर भर गया, अपनी तो सब गरीबी दूर हो गयी। सास बहु ने सूत काटना बंद कर दिया और प्रतिदिन गणपतिनाथ का पूजन करने लग गयी।

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