राणा दे की मासीजी : सूर्यदेव की कहानी

राणा दे की मासीजी : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी

एक समय की बात है, सूर्य भगवान की रानी के मायके से खबर आती है। परन्तु रानी सा को मायके जाने का मन नहीं थी। सूर्य नारायण भगवान रानी को यह कह कर मायके जबरदस्ती मायके भेजते है कि जाओ मैं आपके लिए अच्छी अच्छी वस्तुएँ भेजूंगा । राणा दे अपने पीयर चले जाते है। कुछ दिनों पश्चात सूर्य भगवान राणा दे के लिए चौपड़ पासा,पचेटा, आटी डोरा आदि कुछ वस्तुएँ भेजते है।

राणा दे की भाभियाँ मज़ाक करने के इरादे से चौपड़ पासे, खिलौने आदि सब सामान निकाल देती है और उनके स्थान पर कंकड़ पत्थर और काँटे भर देती है और सारे डिब्बे वापिस बंद कर देती है । राणा दे ने देखने के लिए हाथ डिब्बे में डाले तो उनके हाथ में काँटे चुभ गए। फिर तो उनकी भाभियाँ हंसने लगी। फिर तो राणादे को गुस्सा आ गया।

कुछ दिनों पश्चात् जब सूर्य नारायण राणा दे को लेने पधारे तो राणादे तो सूर्य भगवान से बातचीत भी नहीं करती थी।

राणा दे जब ससुराल गए तो वहाँ पर भी किसी से भी बात नहीं कर रहे थे। सूर्य नारायण ने अपनी माताजी से पूछा कि माताजी राणा दे आपसे बातचीत करते है क्या ? उनकी माताजी ने कहा की नहीं बेटा राणादे जब से ससुराल से वापिस आयी है उसके बाद से बात नहीं कर रहे है।

सूर्य नारायण कहते है कि माताजी आप आज उनको बोलना कि साल (चावल) की बोरी पड़ी है, साल में से चावल निकल दे। परन्तु ऐसा करते समय चावल टूटने नहीं चाहिए, साबुत निकलने चाहिए। अब राणा दे तो रोने लगे। रोते रोते ही वो छत पर चले गए और उन्होंने चिड़ियाओं को बुलाया। राणा दे चिड़ियाओं से कहने लगे कि मैंने कभी तुम्हे चुग्गा डाला होगा, अब तुम इन चावलों को छील दो। ढेर सारी चिड़ियाएँ सारे के सारे चावल छील कर उड़ गयी।

सूर्य नारायण ने फिर पूछा कि माताजी राणादे बोले क्या। माताजी कहती है कि नहीं बेटा वो तो कुछ नहीं बोली। सूर्य नारायण फिर बोलते है कि माताजी इस अब आप उनको कहना कि 108 छेद वाली मटकियाँ है उनमें पानी भर दे। राणा दे तो वापिस से रोने लगे। तालाब पहुँच कर भी वो रो ही रहे थे। उनको रोता देख कर मेंढकियाँ आयी और उनसे पूछती है कि आप रो क्यों रही है। राणा दे ने कहा कि सासुजी ने 108 छेद वाली मटकियों में पानी भरने को कहा है, पानी कैसे टिकेगा उनमें। मेंढकियाँ बोलती है कि आप चिंता मत करो हम छेद पर चिपक जायेंगे फिर आप आसानी से पानी भर लेना। फिर क्या था मेंढकियाँ तो छेद पर चिपक गयी और राणा दे ने पानी से मटके भर दिए।

उस दिन भी सायंकाल में सूर्य नारायण माताजी से पूछते है कि राणा दे बोली क्या। उनकी माताजी कहती है कि नहीं बोली।

सूर्य नारायण कहते कि कल आप उनसे बोलना कि बाग़ में उनके मासीजी आये हुए है जो मिलने जाये।

और उनको यह भी बोलना कि जिस तरफ चरमु बिखरे हुए है उधर जाये। अगले दिन सूर्य नारायण रास्ते में औरत का रूप बनाकर, घूंघट निकाल कर बैठ गए और जब राणा दे उस तरफ आये तो सूर्य नारायण औरत का रूप धरकर ही बैठे बैठे रोने लगे । राणा दे ने कहा क्यों रो रहे हो, कोई मुसीबत आ गयी है क्या।

आगे राणा दे बोले कि मेरे जितनी मुसीबत हो तो क्या करोगे। सूर्य नारायण बोले कि आपके क्या मुसीबत है। राणा दे बोले कि क्या बताऊँ मैं पीयर नहीं जा रही थी फिर भी इन्होने मुझे जबरदस्ती भेजा और बोले कि मैं अच्छी अच्छी वस्तुएँ और इनाम भेजूंगा और डिब्बों में भर कर इन्होने कंकर पत्थर और काँटे भेजे। मैंने देखने के लिए हाथ डिब्बे में डाले तो मेरे हाथ में सब काँटे चुभ गए। मेरी भाभियाँ मेरी मज़ाक बनाने लग गयी।

थोड़े दिनों बाद वापिस लेने आये और मैं ससुराल आ गयी। फिर सासूजी ने मुझे चावल निकलने को बोला और यह भी कहा कि एक भी चावल टूटना नहीं चाहिए। फिर मुझे 108 छेद वाली मटकियों में पानी भरने के लिए कहा। अब आप ही बताओ छेद वाली मटकियों में पानी कैसे ठहरता। वो तो मेंढकिया मटके के अंदर चिपक गयी जो मैंने भर दिया। यह कहते ही राणा दे तो जोर जोर से रोने लगे।

फिर तो सूर्य भगवान ने राणा दे का हाथ पकड़ लिया और अपने असली स्वरुप में आ गए। सूर्य भगवान बोले चुप हो जाओ राणा दे,मैंने तो डिब्बों में चौपड़ पासा, आती डोरा, मिठाईयाँ और अच्छी अच्छी वस्तुएँ भेजी थी। आपकी भाभियों ने ही मजाक करी होगी, मैंने नहीं करी थी। यह बात आप पहले ही बता देते तो इतनी मुसीबत नहीं झेलनी पड़ती।

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *