तुलसी माताजी का पूजन करने वाली कन्या की भक्ति : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी
एक कन्या थी। जब वह थोड़ी बड़ी हुयी और उसको समझ आने लगी तब से ही वह तुलसी माताजी का पूजन करने लगी। उसके प्रतिदिन का नियम था कि तुलसी माताजी का पूजन करने के बाद ही खाना खाती थी। जब वह कन्या शादी के लायक हुयी तब उसके माता पिता ने उसकी शादी करवा दी। कन्या को उसके माता पिता ने दहेज़ में भी एक तुलसी का गमला दिया।
ससुराल में वह प्रतिदिन सवेरे उठते ही पूजा करती फिर उसके बाद ही खाना खाने बैठती थी। उसकी दो जेठानिया थी, वो दोनों उसका मजाक उड़ाती थी कि बड़ी नियम धरम वाली बनती है। उन दोनों को उससे बहुत ईर्ष्या होती थी इसलिए वो दोनों तुलसी जी का गमला जी छुपा देती। वह कन्या बड़ी मुश्किल से गमला ढूंढ कर लाती, अच्छे से पूजा करती और फिर खाना खाती।
वह गमला ढूंढ कर लियाती तो एक दिन तो उसकी जेठानियों ने क्या करा कि गमला ही दूर फेंक दिया। कन्या ने खूब ढूंढा पर उसे गमला नहीं मिला। वह बहुत ही परेशान हो गयी। उस दिन तो उसने खाना भी नहीं खाया, उसका नियम जो था। उस कन्या की सच्ची भक्ति देख कर तुलसी माता उससे बहुत प्रसन्न हो गये। और उसके कमरे में तुलसी माता का गमला प्रकट हो गया। अगले दिन सुबह जब वह उठी तो क्या देखती है कि उसके खाट के चारो कोनो पर तुलसी माता का गमला आ गया है।
यह देख कर वह तो बहुत प्रसन्न हो गयी कि अब मेरी तुलसी माता को कोई चुरा नहीं सकेगा।
पूजन करने के लिए भी कही और जाना नहीं पड़ेगा और कोई मेरी तुलसी माता को फेंक भी नहीं सकेगा। वह तो जल्दी से उठ कर स्नान करती है और तुलसी माता की पूजन कर लेती है। जब वह खाना खाने बैठी तो उसकी जेठानिया मजाक करने लगी कि लो देवरानी का नियम धरम पूरा हो गया। उससे पूछती है कि तुलसी जी की पूजा कर ली क्या। देवरानी धीरे से बोलती है है कर ली।
जेठानिया बोलती है कहा से कर ली पूजा, गमला तो फेंक दिया था। देवरानी कहती है कि देख लो मेरे कमरे में खाट पर तुलसी जी लग रही है। जेठानिया बहुत शर्मिंदा हुयी और बोली कि देवरानी तेरी भक्ति सच्ची है, हमने तुझे बहुत परेशान करा। हमें माफ़ कर दे। देवरानी उन्हें माफ़ कर देती है।
हम भी तुलसी माताजी से यही प्रार्थना करते है कि “हे तुलसी माता जैसी कृपा आपने देवरानी पर करी वैसी हम सब पर भी करना। “