अजा एकादशी वर्ष 2020 में 15 अगस्त, शनिवार को है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आती है।
॥ अथ भाद्रपदकृष्णैकादशी कथा ॥
युधिष्ठिर कृष्ण भगवान से कहते है – हे जनार्दन ! भाद्रपद के कृष्णपक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? उसे मैं सुनना चाहता हूँ। श्रीकृष्ण बोलते है – हे राजा ! तुम एकाग्न मन से सुनो; में उसे विस्तारपूर्वक कहूंगा। वह एकादशी अजा नाम से प्रसिद्ध है; और सब पापों का नाश करने वाली है; जो कोई भगवान का पूजन करके उसका व्रत करता हे, तो व्रत के सनने से ही उसके पाप नाश हो जाते हैं। हे राजा ! दोनों लोकों में इससे बढ़कर कोई हित करनेवाली नहीं है; मेंने इसमें सत्य कहा है, झूठ नहीं है।
पहले काल में एक हरिश्चंद्र नाम का चक्रवर्ती ओर सत्यप्रतिज्ञ राजा हुआ था। किसी कर्म के योगसे उसका राज्य नष्ट हो गया था; सो उसने अपनी रानी और पुत्र को बेचकर अपने को भी बेच डाला था।
हे राजेन्द्र ! वह पुण्यात्मा राजा चांडाल का नौकर बन सेवा करने लगा और मुर्दों के वस्त्र लिया करता था। परंतु उसने सत्यका सहारा न छोड़ा एवं आपत्ति में भी वह राजा सत्य से भ्रष्ट न हुआ।
फिर बहुत से वर्ष बीत गये। तो राजा चिंता करता करता बड़ा दुःखी हुआ, कि में क्या करूं? कहां जाऊं? और कैसे मेरा उद्धार होगा?
यों चिंता करते हुये ओर चिंतारूपी समुद्रमें डूबे हुये उस राजाको दुःखी जानकर उसके पास कोई ( गौतम नाम ) मुनीश्वर आये। ब्रह्माजी ने पराये उपकार करने के लिये ही ब्राह्मण को बनाया है। उस श्रेष्ठ राजा ने उन श्रेष्ठ मुनि को देखकर प्रणाम किया और अंजली बांधकर गौतम मुनि के सामने खड़ा हो गया, ओर अपना वृत्तांत उनसे कहा।
राजा के वचन सुनकर गोतमजी को बड़ा दुःख हुआ।
फिर मुनि ने राजा को इस व्रत का उपदेश किया। हे राजा ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में सुन्दर अजा नाम से विख्यात एकादशी बड़े पुण्य की देनेवाली है। हे राजा ! तुम उसका व्रत करो, तुम्हारे पापों का नाश हो जायगा और तुम्हारे भाग्य से वह आज से सातवें दिन पड़ेगी। और व्रत करके रात्रि को जागरण करना। इस प्रकार से व्रत करने से सब पाप क्षय हो जाता है। और हे नृपोत्तम ! मैं तुम्हारे पुण्यके प्रभाव से ही यहाँ आया हूं, यह कह कर मुनि अदृश्य हो गये।
राजा ने मुनि का वचन सुनकर इस उत्तम व्रत को किया और इस व्रत के करते ही राजा का पाप क्षण भर में दूर हो गया।
हे राजशार्दुल ! इस व्रत का प्रभाव सुनो, कि जो दःख बहुत वर्षों तक भोगने का था, उसका नाश हो गया। और इस व्रत के प्रभाव से राजा है दुःख के पार हो गया और उसका स्त्री से मिलाप हो गया और उन्होंने अपने पुत्र को जीता पाया। देवताओं ने नगारे बजाये और स्वर्ग से फ़ूलों की वर्षा हुई और एकादशी के प्रभाव से उसने अकंटक राज्य पाया। फिर राजा हरिश्वंद्र ने पुरवासी ओर परिवार समेत स्वर्ग पाया।
हे राजा युधिष्ठिर ! जो द्विजोत्तम इस प्रकारका व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग को जाते हैं, यह निश्चित है ओर हे राजा ! जो पुरुष इस कथा को पढ़ता और सुनता है उसको अश्वमेध का फल प्राप्त होता है।