शीतला सप्तमी 2020 में 15 मार्च को व 16 मार्च शीतला अष्टमी

वर्ष 2020 में 15 मार्च को शीतला सप्तमी है तथा 16 मार्च को शीतला अष्टमी है।

संक्रामक व अन्य कई रोगों दूर करती हैं व महामारियों से बचाती हैं शीतला माता। अनूठा है इनका व्रत!

माता शीतला की पूजा देश भर में होती है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी और अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी नाम से जाना जाता है। इनमें से किसी एक दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है। पिछले दिन के पकाए भोजन का मां शीतला को भोग समर्पित किया जाता है। इसलिये यह व्रत बासौड़ा भी कहलाता है। 


यह व्रत शीतला माता को समर्पित है। शीतला माता अपने हाथों में कलश, सूप, झाडू और नीम के पत्ते धारण किए हुए हैं। मां शीतला की पूजा-अर्चना का विधान अनोखा है, जहाँ माता को शीतल खाध्य ही अर्पित किये जाते हैं। उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान एक दिन पूर्व ही  तैयार कर लिए जाते हैं। सप्तमी या अष्टमी किसी भी एक दिन ये एक दिन पूर्व तैयार किये पकवान मां को नैवेध्य के रूप में समर्पित किए जाते हैं।

सप्तमी अथवा अष्टमी किसी एक दिन को चुन कर उस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और बासी भोजन ही किया जाता है।


माता की पूजा के लिए ऐसी रोटी या पूरी बनानी चाहिए जिनमे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों। इस दिन सुबह जल्दी उठकर शीतल जल से स्नान करें। आटा गूंथकर आटे से छोटा दीपक बना लें। यह दीपक बिना जलाए ही माता को समर्पित किया जाता है। माता को शीतल जल, दही, छाछ, काजल, मेहंदी, वस्त्र आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। शीतला माता का उनके मन्दिर में अथवा जहां होलिका दहन हुआ हो वहां पूजा करें।

शीतला माता की कृपा से ज्वर, नेत्र रोग, विविध संक्रामक रोग, कोई महामारी तथा ऋतु परिवर्तन के कारण होने वाले रोग नहीं होते हैं।* इस व्रत को रखने से समृद्धि में वृद्धि होती है, उत्तम संतान की प्राप्ति होती है और संतान का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इस दिन कोई भी गरम खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए और माता शीतला की पूजा करनी चाहिए। यह अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है। इस दिन घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं।

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