तुलसी महारानी का ब्राह्मण की सातवीं बेटी बनना

तुलसी महारानी का ब्राह्मण की सातवीं बेटी बनना : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी

एक ब्राह्मण था, वह प्रतिदिन मंदिर जाता था । वह प्रतिदिन तुलसी माता की पूजा करता था । वह तुलसी माता से प्रतिदिन प्रार्थना करता था कि है तुलसी महारानी मेरे आनंद करना।

तुलसी माता ने सोचा कि यह ब्राह्मण तो बहुत सीधा है और गरीब है और प्रतिदिन मेरी पूजा करता है । मैं इसके कुछ न कुछ करना चाहती हूँ । तो तुलसी महारानी एक कन्या का रूप बनाकर बैठ गए । और उस ब्राह्मण को बोला कि ब्राह्मण में भी तेरे घर आना चाहती हूं ।

ब्राह्मण ने सोचा कि 6 लड़कियां तो मेरे पहले से ही है और सात लड़कियों का में कैसे पालन पोषण करूंगा?

लड़कियों की शादी कैसे कराऊंगा ? मेरे पास तो कुछ ऐसा भी नहीं है यह व्यभिचार करके वह बहुत परेशान रहने लगा । उसको तो खाना भी नहीं भा रहा था । उसकी औरत ने कहा कि क्या बात है आजकल बहुत दुखी दुखी रहने लग गए।

तो इस पर ब्राह्मण बोला कि मैं मंदिर जाता हूं वहां पर एक छोटी सी सुंदर सी कन्या बैठी है और वह कहती है कि ब्राह्मण में आपके घर आऊं ।

उसकी पत्नी बोली कि अरे इसमें परेशान होने की क्या बात है, आ रही है तो आने दो। ब्रह्मण बोला कि पहले से अपने 6 लड़कियाँ तो है ही, उनकी भी अपने को शादी भी करवानी है। तो इस पर ब्राह्मणी बोली कि अरे ये तो कोई बात नहीं है, अपनी 6 लडकियों की शादी करवाएंगे वैसे सातवीं की भी करवा देंगे। अपन सातों लड़कियों की शादी साथ में करवा देंगे।

अगले दिन जब वह ब्राह्मण मंदिर गया तो उस छोटी कन्या ने पूछा ब्राह्मण में आपके घर आऊं तो ब्राह्मण बोला की हा चल बेटा चल । उनको वह घर पर लेकर आ गया ।

तुलसी माता के कन्या के रूप में ब्राह्मण के घर आने से ब्राह्मण के घर बहुत आनंद हो गया । घर में लक्ष्मी की बारिश हो गई।

जब ब्राह्मण सातों कन्याओं की शादी के लिए वर ढूंढने जाने लगे तो उस छोटी कन्या ने कहा कि मेरे तो शालिग्राम जी के मंदिर में जाकर शालिग्राम जी को बोलना कि बरात लेकर आए। और मेरी छः बहनो के तुम्हारी इच्छा से वर ढूंढ लेना

तुलसा महारानी की मेहरबानी से उसके तो सब जेवर कपड़ा खाना सब तैयार हो गया और अच्छी धूमधाम से उनकी शादी हो गई और उस ब्राह्मण के तुलसी माता टूटमान हुए

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