आँवले का पेड़ : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी
एक समय की बात है एक सेठ सेठानी थे। सेठानी बहुत नियम धरम वाली थी। वह होली के दिनों में प्रतिदिन दशामाता, गणपति, सूर्यनारायण, पंथवारी माता और तुलसी माता की कहानी कहती थी। उनके घर में एक आँवले का पेड़ था। वह प्रतिदिन ब्राह्मण को एक आँवला दक्षिणा में देती थी और आराम से रहती थी।
एक दिन क्या हुआ कि पड़ोसन सेठानी जी की बहु को कहने लगी कि सेठानी जी प्रतिदिन का एक आँवला दे देती है,तुम्हारे भी तो बच्चे है। प्रतिदिन ना देकर और एक दिन छोड़ कर एक दिन दे तो भी कोई बात नहीं। बहु ने सेठानी से कहा की आप जो प्रतिदिन आँवला देते हो वो एक दिन छोड़ कर एक दिन दे तो। सासुजी बोले कि हाँ बहु तुम कहोगी वैसा करेंगे।
सेठानी ने यह बात सेठजी को बताई कि बहु एक दिन छोड़ कर एक दिन आँवला देने को कह रही है। अपने भी बच्चे है बहु के मन में यह बात आ गयी है। अब अपन यहाँ से कही दूसरी जगह चले।
फिर सेठ सेठानी दोनों आधी रात में घर छोड़ कर निकल गए।
दोनों उजाड़ वन में चले गए। आगे एक छोटा सा मंदिर आया। उस मंदिर में दोनों ठहर गए। रात को सेठानी दशामाता जी से प्रार्थना करने लगी कि कल आँवला कहाँ से देऊँगी। कैसे मेरा नियम पूरा होगा।
उसकी करुणा भरी आवाज़ दशामाता ने सुन ली। उनके वहाँ रातों रात आँवले का पेड़ उग गया। सुबह उठ कर जब सेठानी ने आँवले का पेड़ देखा तो वह बहुत खुश हो गयी। वह मन ही मन सोचने लगी कि दशामाता जी ने मेरी सुन ली। दशामाता जी की कृपा से मेरा नियम पूरा हो जायेगा।
सेठानी ने सुबह नहा धोकर दशामाता की, गणेश जी की सबकी कहानियाँ कही।
दशामाता जी की कृपा से एक ब्राह्मण भी आ गया। उसको सेठानी ने दक्षिणा में आँवला दे दिया। फिर आगे भी प्रतिदिन सेठानी अपने नियमानुसार एक आँवला ब्राह्मण को देने लगी। सेठानी के तो आँवली बहुत फ़ैल गयी।
अब तो सेठानी प्रतिदिन एक की जगह पाँच पाँच आँवले देने लगी। और सेठ सेठानी के खूब धन हो गया। सेठानी बोलती है कि अपन परसादी करते है और एक-एक सोने का आँवला सबको दक्षिणा में देते है।
आस पास के सब गाँवो में खबर पहुचायी की वहाँ परसादी है और एक-एक सोने का आँवला परसादी में देंगे।
उधर सेठ सेठानी के घर छोड़ कर जाने के बाद से ही उसके बेटे बहु के घर में खाने की खूब कमी हो गयी और उनके भूखे मरने की नौबत आ गयी। जब बहु पानी भरने गयी तब उसको भी पता चला की कोई परसादी कर रहा है और सोने का आँवला दक्षिणा में मिलेगा।
वह अपने पति को बोलती है अपन भी भूखे रहते है , में जब पानी भरने गयी तो मुझे पता चला की कोई परसादी कर रहा है, दक्षिणा में आँवला भी मिलेगा, अपन भी परसादी में चलते है। उसका पति बोलता है कि तेरे चाले लग कर सब खोया मेने। एक समय था जब अपने घर से भी एक आँवला दक्षिणा में देते थे, अब दुसरो के यहाँ आँवला लेने जायेंगे क्या।
सेठ सेठानी के बेटा बहु तो वहाँ गए। सेठ सेठानी ने उन्हें पहचान लिया और आपस में बात करने लगे कि अपन तो इनके लिए खूब सारा छोड़ कर आये थे, इनकी ऐसी हालत कैसे हो गयी।
सेठ सेठानी ने बेटा बहु को सभी आये लोगो को दक्षिणा देने के लिए बिठा दिया। बहु ने अपने पति से कहा कि थोड़े आँवले आप अपने पास रख लेना। बेटा उसको फटकारता है और बोलता है कि पहले तेरे चाले लगा वही बहुत है। अब मैं तेरे बहकावे में आने वाला नहीं हु। तू चुप चाप बैठ जा और सबको दक्षिणा दे ।
जब सभी आये हुए मेहमानो भोजन कर चुके तो सेठ सेठानी बोले कि अब अपन चारो भी जीम लेते है। सेठानी ने नीम के पत्तो की चटनी भी बनाई होती है। सेठानी सबके पातल परोसती है और नीम के पत्तों की चटनी भी परसोती है। और बोलती है कि हमारे नियम है कि हम पहले चटनी खाते है। बेटा बहु थोड़ी थोड़ी चटनी ही चाट रहे थे।
तो फिर सेठानी बोली की क्या हो गया ऐसे चाट क्यों रहे हो आराम से खाओ चटनी।
बेटा बहु कहते है कड़वी लग रही है चटनी। सेठानी बोलती है कि तुमको माँ बाप भी ऐसे ही कड़वे लगते है। सेठानी के ऐसा बोलने पर बेटा बहु बहुत शरमा गये। सेठानी बोलती है कि हम तो सब कुछ तुम्हारे लिए छोड़ कर आये, तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गयी।
उसके बाद बेटा बहु उनके पैर पड़े और बोले कि आप दोनों वापिस घर चलो। सेठानी बोली कि अब हम तो नहीं आये वापिस, तुम्हारे भी बाल बच्चे है, तुम लोग आराम से रहो। बेटा बहु नहीं मानते है और फिर बोलते है कि आपका घर है वो आपको तो आना ही पड़ेगा। माँ बाप को दया आ जाती है। बहु कहती है कि भली आप एक की बजाय पांच आंवले देना पर आप हमारे साथ वापिस चलो।
हम भी दशामाता जी से यही प्रार्थना करते है कि “है दशामाता जैसी कृपा आपने सेठानी पर करी वैसी कृपा आप हम सब पर करे। “