फकीर की बेटी : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी
एक नगरी है उसमें एक बाग है । बाग में एक फकीर रहता है । वह बस्ती में से भीख मांगकर लाता था। कोई आटा देता, कोई रोटी तो कोई अनाज देता था।
परंतु होली के आने के बाद सब औरतें एक मंदिर में बैठकर दशा माता की कहानियां सुनती व कहती थी। किसी के घर पर कोई नही मिलता था तो वह फकीर परेशान हो गया। जब उसे मालूम हुआ कि सभी औरतें मंदिर में बैठी है और वहाँ दशामाता जी की कहानियाँ सुन रही है, तो वो भी वही मंदिर में बैठ गया। और वह भी उनके पास बैठकर दशा माता की कहानियां सुनने लगा ।
उसने पूछा कि इनको सुनने से क्या होता है, तो उन्ही महिलाओ में से एक महिला ने बोलै कि अन्न, धन, लाभ, लक्ष्मी सब कुछ मिलता है। तो इस पर फकीर बोला कि मेरे भी कुछ नहीं है दशामाता जी मुझे भी कुछ जरूर देंगे। फकीर की हथेली में एक फफोला हो गया।
दस दिन होने के बाद फफोले में से एक सुन्दर कन्या जन्मी।
वह कन्या दशामाता की ही दी हुई थी।
फकीर ने बाग़ के एक पेड़ पर कन्या के लिए झूला लगा दिया और उसको झूला झुलाता था। और झूला देते हुए बोलता की झूलो मारी नानी बाई, झूलो मारी फूला बाई। तेरी शादी तो में राजा के घर पर कराऊंगा। चूँकि वह कन्या (फकीर की बेटी) दशा माता की दी हुई थी तो वह जल्दी जल्दी बड़ी होने लगी और बहुत ही खूबसूरत दिखती थी।
कन्या के बड़ी होने के कुछ समय पश्चात् बाग़ में में एक राजा घूमने आए थे। घूमने आये हुए राजा ने कन्या को देखा और मन में सोचा कि यह कन्या कितनी खूबसूरत है, इससे तो मैं ही शादी करूंगा, सिर्फ में ही शादी करूँगा। राजा ने जब पता करवाया की यह कन्या किसकी है तो उसे पता चला कि ये तो फ़क़ीर की कन्या है।
राजा ने फ़क़ीर को बोला कि तुम्हारी कन्या से शादी करना चाहता हूँ।
इस पर फ़क़ीर बोला कि आप तो राजा है, मैं गरीब हूं, मैं गरीब फकीर कैसे आपसे मेरी कन्या की शादी करा दू। में आपसे शादी नई करा सकता अपनी कन्या की। राजा नहीं मानता है, वो कहता है की मुझे तो तुम्हारी कन्या से ही शादी करनी है। फ़क़ीर अपनी कन्या की राजा से शादी करने को तैयार हो गया। और राजा ने तो उस फकीर की बेटी से शादी कर ली।
राजा के रानियां तो पहले से थी पर कुंवर किसी भी रानी के नहीं था। नयी रानी ज्यादा सुंदर थी तो राजा उससे ज्यादा खुश रहते और उसको दूसरी रानियों से ज्यादा अच्छा रखते थे ।
कुछ दिनों बाद नयी रानी गर्भवती हुई, और राजा के व्यापार के लिए दूसरे देश जाने का समय आया तो रानी बोली कि आपके जाने के बाद मेरा ध्यान कौन रखेगा।
मेरे से दूसरी रानियां थोड़ी नाराज रहती है राजा ने बोला की सबसे बड़ी रानी है वह थोड़ी समझदार है मैं उसको जिम्मेदारी देकर जाऊंगा और मेरे को कुछ निशानी दे दो ताकि मुझे भी पता लग जायेगा।
रानी ने गुलाब की कली निशानी के रूप में राजा को दे दी।
9 महीने पूरे होने पर बड़ी रानी ने दाई माई को पैसे देकर समझा दिया कि अगर इसके लड़का हो जाएगा तो राजा हमको अच्छा नहीं रखेंगे। उसको बोलना राजा के यहां ऐसा नियम है कि आंखों पर पट्टी बांधकर बच्चे को जन्म देती है। और तू बच्चे को भैंस को खिला देना। दाईमाँ ने ऐसा ही किया और छोटी रानी से कहा कि राजा के कहां कुंवर लिखा है।
राजा के कुंवर भाग्य में होता तो दूसरी रानियों के भी होता। छोटी रानी को ऐसा कहने के पश्चात् उसके बच्चे को भैंस के सामने रख दिया।
उस समय सतयुग चल रहा था तो भैंस इस बच्चे को पूरा का पूरा निगल गई। वह भैंस पहले तो उसको चाटने लगी और बाद में वह उसके मुंह में चला गया था। 10 महीने बाद भैंस के पाड़ा हुआ। अब उधर राजा के पास कली खिली। राजा के वापिस लौटने पर खूब बड़ा जलसा करा । राजा तो भूल भी गए थे कि उसके सातवीं रानी भी है। और दूसरी रानियों ने उस सातवीं रानी (जो कि फकीर की बेटी थी) को तो चमड़े के कपड़े पहना कर एक बांस की लकड़ी देकर महल के ऊपर से कौवे उड़ाने वाली बना दिया था ।
जब भैंसा कुछ बड़ा हुआ तो किसी और को कुछ नही करता था पर बड़ी रानी को भेंटिया मारता था ।
बड़ी रानी ने सोचा कि यह तो वही दुश्मन है। बड़ी रानी राजा से बोली कि इस भैंसे को मरवा दो। यह सबको भेंटिया मारता है।
नौकरों को पाड़ा मारने के लिए भेज दिया और बोलै की इसको मार कर आंखें निकाल कर आना। वह लोग उसको मारने के लिए दूसरे शहर ले गए। दूसरे शहर के राजा की लड़की को घर में बैठे बैठे सब दीख रही था। उसको पुराना आगे पीछे का सब पता चलता था।
राजकुमारी उन आदमियों से बोलती हैं कि यह पाड़ा मेरे को दे दो।
तो वो लोग बोले कि नहीं हमको तो इसको मारना है। वो बोलती हैं कि इस मासूम पाड़े को क्यों मारते हो, इसको मुझे दे दो । नौकर बोलते हैं कि हमको इसको मारना का हुक्म मिला हैं है और इसकी आंखें हमे सबूत के तौर पर दिखानी हैं, तो इस पर लड़की बोलती है कि जो कोई भी जानवर मरा हो उसकी आंखें लेकर चले जाओ। राजकुमारी उस पाड़े को प्रतिदिन हरी हरी अच्छी अच्छी घास खिलाती थी। चांदी के बर्तन में पानी पिलाती थी और उसको बहुत अच्छा रखती थी।
कुछ समय पश्चात् एक दिन उस राजकुमारी के पिता राजा को विचार आता है कि अब मेरी राजकुमारी भी बड़ी हो गई है उसके लिए अच्छा वर ढूंढना चाहिए। तो राजा अपनी बेटी राजकुमारी से बोलता है कि बेटी अब तुम्हारे लिए सुयोग्य वर ढूंढने का समय आ गया हैं, तुम बताओ तुमको कैसा वर चाहिए । तो इस पर राजकुमारी कहती है कि में तो इस भैंसे से ही शादी करूंगी। राजा रानी बोलते हैं कि भैंसे से कोई शादी करता है क्या ?
परंतु राजकुमारी नहीं मानती हैं, वो तो कहती हैं कि में तो भैंसे से ही शादी करुँगी।
राजकुमारी के ज़िद करने पर उसकी शादी भैंसे से करा देते हैं। एक दिन राजा शिकार खेल कर घर आए तो गोखड़े में राजकुमारी के साथ रात को किसी कुंवर को बैठा देखा तो डर गए की राजकुमारी किस कुमार से बातें कर रही है। राजा ने रानी को बोला कि अपनी राजकुमारी किसी कुमार से बातें कर रही है। रानी ने कहा अरे हां मैं बताना भूल गई थी। अपनी राजकुमारी तो बहुत ही समझदार है।
अपनी राजकुमारी ने जिस पाड़े से शादी करी थी ना उसमें से रात को एक सुंदर सा कुंवर निकलता है। और सुबह होते ही वह कुंवर पाड़े की खोली में चला जाता हैं। राजा राजकुमारी से बोलता हैं की आज कुंवर से पूछना कि उसकी खोली कैसे बदली जा सकती हैं।
राजकुमारी के पूछने पर कुंवर बोलता हैं कि अरे मेरी खोली तो सहज में ही बदली जा सकती हैं परन्तु थोड़ा सा ध्यान रखना पड़ेगा। वह कहता हैं कि संटिया (कच्ची लकड़ी ) की गठरियाँ मंगवा ले, दही – दूध के घड़े भरवा ले, गुलाबजल और पानी के घड़े भरवा ले। जब में खोली पहनने लगू तो जल्दी से संटिया मेरी खोली पे डालकर उसे जला देना। में जब जलूँ जलूँ बोलने लगूँ तो दही दूध, गुलाब जल और जल से भरे घड़े मुझ पर डाल देना। इस प्रकार से मेरी खोली बदली जा सकती हैं।
अगले दिन उन्होंने इसी तरह से उन्होंने खोली बदलवा दी। और उसमें से सुन्दर कुंवर निकला।
अब कुछ दिनों बाद कुंवर बोले कि अब हम भी हमारे महल जाना चाहते हैं। हमारे भी पूरा परिवार है, मां पिताजी राजपाट सब है सो अब आप हमको भी सीख दो। राजा ने कहा की बिना कुछ दिए ऐसे कैसे भेजू में आपको। फिर तो राजा ने उन्हें बहुत सारा दहेज देकर पूरे लवाजमें के साथ विदा करा। कुंवर और राजकुमारी ने अपने नगर पहुंचने पर नगाड़े बजवाये ।
राजा ने सोचा कि कोई दूसरा राजा चढ़ाई करने आया दिखे तो वो अगवानी करने हाथ जोड़कर आए। कुंवर ने कहा कि आज का खाना मेरी तरफ से है । आप ढूंढी पिटवा दो की नगरी के सब लोग खाना खाने आवे। कोई भी चूल्हा नहीं जलावे। पूरा नगर खाना खाने आया।
कुंवर कहता हैं कि महल में से भी कोई बचा तो नहीं हैं।
रानी बोलती हैं कि और तो कोई नहीं है एक काग उड़ावन (फकीर की बेटी) है। उसके तो किसी के साथ भी परोसा भेज देना तो इस पर वह कुंवर बोलता कि नहीं नहीं वह जिस भी हालत में उसको लाना पड़ेगा। तभी मेरी प्रसादी पूरी होगी।
फिर राजा की सांतवी रानी जिसको बड़ी रानी ने काग उड़ावन बना दिया था उसको लेकर आए। कुंवर ने राजकुमारी को इशारा किया कि यही मेरी असली मां है। रानी कुंवर और राजा की नजर मिलते ही रानी की चोली चीरा कर दूध कुंवर के मुंह पर गिरा। नौ महीने तो माँ के पेट में रहा, दस महीने भैंस के पेट में रहा पर माँ का दूध आज जाकर मिला।
राजा सोचने लगा कि यह क्या रचना हो रही है।
उधर इस घटना के बारें में जब मोटी माँ भी पता चल गया। वह सोचने लगी कि हो ना हो यह कुंवर वही दुश्मन दिखता है। फिर कुंवर ने राजा को सारी बात बताई कि याद करो आपने फकीर की बेटी से शादी करी थी। फिर आप व्यापार के लिए परदेस चले गए थे। उस समय आपकी सांतवी रानी गर्भवती थी। उसने आपसे कहा भी था की वो अकेली कैसे रहेगी। तो आपने कहा की कुछ निशानी दे दो। तो फिर रानी ने आपको गुलाब की कली दी थी।
आप सांतवी रानी को बड़ी रानी के भरोसे छोड़कर गए थे कि यह समझदार है इसका ध्यान रखेगी।
इन्होने तो ऐसा ध्यान रखा की जन्मते ही दाई माई को सीख देकर पैसे खिलाकर भैंसे के सामने रख दिया। भैंस पूरा निकल गई, दस महीने बाद भैंस के पाड़ा हुआ। मोटी मां के कहने पर आपने पाड़े को जंगल में मारने के लिए भेज दिया।
यह तो इस कन्या को सब पता चलता था आगे पीछे का और दशा माता का इष्ट था इसको जो इसने मेरी जान बचाई। फिर तो राजा को सारी बात याद आ गई। कुंवर का राजगद्दी पर बिठाया। पूरा नगर खुश हो गया कि कुंवर सा आ गए। और खड्डे खुदवा कर छहो रानियों को जमीन में गड़वा कर उस पर घोड़े घुमवाये |
दशामाता जी से हम यही प्रार्थना करते हैं कि ” हे दशामाता, फकीर की बेटी के ऊपर जैसी मुसीबत आई वैसे किसी के ऊपर नही आये और जैसी उसकी लाज रखी वैसी सबकी लाज रखना।”