पाट पीताम्बर का वेस : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी
एक बुढ़िया थी । उसको तुलसी पूजा करने का नित्य का नियम था । वह प्रतिदिन खाना खाने से पहले पूजा करती थी और उसके बाद खाना खाती थी ।
वह तुलसी माता से प्रतिदिन प्रार्थना करती थी कि
“है तुलसी माता खाण् खीर का भोजन देना,
पाट पीतांबर का वेस देना।
योगियो जैसी मौत देना,
स्वर्ग का वास देना।
राम लक्ष्मण की कांध देना,
सीता जी का चाल चलावा देना। “
यह सुनकर तुलसी जी सूखे सूखे रह रहे थे।
राम लक्ष्मण उधर से निकल रहे थे तो उन्होंने पूछा तुलसी जी से कि आप सूखे सूखे क्यों जा रहे हो।
एक बुढ़िया रोज मेरी पूजा करती है और वह मुझसे खाने का लड्डू मांगती है, खेलने को भाई मांगती है,खाण खीर का भोजन मांगती है, पाट पीताम्बर का वेस मांगती है, आपकी कांध मांगती है , सीताजी का चाल चलावा माँगती है, स्वर्ग का वास मांगती है, योगिनियो सी मौत मांगती है ।
बाकी सब तो मैं दे दूं पर आपकी कांध कहां से दूं और सीता जी का चाल चलावा कहां से दूं।
राम जी और लक्षमण जी तुलसी जी से बोले कि आप हरे-भरे हो जाओ सब हो जाएगा ।
कुछ दिनों बाद बुढ़िया मर गई । लोग इकट्ठे होने लगे क्यों ले जाने के लिए उसको तैयार करने के उठाने लगे तो वह इतनी भारी हो गयी की उसको लोग उठा नहीं पाये। उसको हिला भी नहीं पा रहे थे। लोग कहने लगे की बुढ़िया इतनी भारी कैसे हो गई वह तो देव दर्शन सब करती थी। क्या वह कोई जादू टोना करती थी जो ऐसी भारी हो गई।
इतने में राम लक्ष्मण और सीता जी आए, सीता जी ने चाल चलावा किया और राम लक्ष्मण ने कंधा दिया और बुढ़ीया तो सदेह वैकुंठ को चली गई।
हम भी तुलसी माता जी से ये प्रार्थना करते है कि “हे तुलसी महारानी जैसी सद्गति उसको दी वैसी सद्गति सबको देना। “