बेशकीमती मोती : दशामाता पर्व की कहानी

बेशकीमती मोती : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी

एक समय की बात है, एक ब्राह्मणी थी। उसको दशामाता का इष्ट था। उसका प्रतिदिन का नियम था कि जो कोई भी उसके दरवाजे पे कुछ मांगने आता था, उसे वह जरूर देती थी। वह किसी को भी अपने घर से खली हाथ जाने नहीं देती थी। जो आटा मांगता था उसे वो आटा देती थी, जो अन्न मांगता था उसे वो अन्न देती थी। ब्राह्मणी के आँगन में एक पीपल का पेड़ भी था, जिसकी वह प्रतिदिन पूजा करती थी।

उस समय सतयुग चल रहा था। दशामाता ने विचार करा देखु तो सही ये कितने सत् पे चलती है। तो दशामाता एक हंस का रूप धरकर उसके घर पधारे। और आंगन में लम्बी लम्बी गर्दन करके घूमने लगे। ब्राह्मणी ने गेहूँ के दाने डाले वो हंस ने नहीं खाये। मक्की के दाने डाले वो भी नहीं खाये। ब्राह्मणी ने जवार के दाने डाले वो भी नहीं खाये।

उस समय सतयुग चल रहा था तो हंस ने बोल कर कहा कि हंस चुगे तो मोती चुगे वरना भूखा ही रहे।

तब तो फिर ब्राह्मणी के घर में जो पैसे थे वो देकर दुकान से मोती लियाई और हंस को मोती चुगाये। और हंस तो मोती चुग कर चला गया। दूसरे दिन जब हंस तो आकर बोले कि हंस चुगे तो मोती चुगे वरना भूखे ही रहे। तो फिर ब्राह्मणी अपने जेवर बेच कर दुकान से मोती खरीद कर लायी और हंस को चुगाये। हंस तो मोती चुग कर चला गया।

तीसरा दिन होते ही जब वह हंस वापिस आया तो ब्राह्मणी परेशान हो गयी कि अब में मोती कहा से लाऊंगी। फिर ब्राह्मणी अपना घर गिरवी रख कर मोती खरीद कर लायी और हंस को चुगाये। उस दिन ब्राह्मणी को नींद भी नहीं आयी कि कल जब हंस आएगा तो मोती कहा से लाऊंगी। चौथा दिन होते ही हंस तो आ गया। फिर ब्राह्मणी अपनी बेटी को सेठ के यहाँ नौकरानी के रूप में रखने की बात करके सेठ से पैसे लेकर आयी।

ब्राह्मणी बोलती है की कल से में अपनी बेटी को आपके घर नौकरनी के रूप में भेज दूंगी। फिर ब्राह्मणी उन पैसो से मोती लेकर आयी और हंस को चुगाये।

रात को ब्राह्मणी सोचती है कि कैसे में अपनी बेटी को नौकरानी के रूप में सेठ के घर भेज दू। लोग क्या सोचेंगे की हमने अपनी बेटी को नौकरानी बना दिया। तो ब्राह्मणी बोलती है कि अपन सवेरा होने से पहले ही यहाँ से चले जाते है। अपनी बेटी को नौकरानी नहीं बना सकते है। वो लोग अँधेरे में ही निकलने लगे। उस समय पीपल परमेश्वर तो झरने लगे, और नीचे गिरे हुए सारे पत्ते तो बेशकीमती मोती बन गए। तब ब्राह्मण ने कहा कि मेरे पैरो में कुछ चुभ रहे है। जरा दीपक तो लाना, देखते है क्या चुभ रहा है। फिर तो वो क्या देखते है कि आंगन में तो मोती ही मोती बिखरे पड़े है।

ब्राह्मणी ने सारे मोती अवेर कर अपने पास रख लिए। और बोली की बस सुबह होते ही थोड़े मोती देकर सेठ जी के पैसे चूका देती हू। वो सेठ जी को बोलती हैं की आपका ब्याज समेत सब उधार चूका दिया हैं। दशमाता जी की कृपा से ब्राह्मणी का सब दारिद्रय दूर हो गया और उसके सब आनंद हो गया।

सेठ की लड़की ने उन बेशकीमती मोतियों की माला बनवाकर पेहन ली।

सेठ की लड़की के राजा की लड़की से दोस्ती थी। राजकुमारी ने बोला कि ऐसी बेशकीमती और सुन्दर मोती तेरे पास कैसे आये। सेठ की लड़की बोलती है की मुझे नहीं पता, ये तो मेरे पिताजी लाये। राजा ने सेठजी को अपने राजमहल में बुलाया।

और राजा ने उससे पूछा कि तुम ऐसे बेशकीमती मोती कहा से लाये। वह बोली कि मेरे पास एक ब्राह्मणी आयी थी। तीन दिन तक तो वह उधर पे मेरे से मोती ले गयी। और चौथे दिन वापिस मुझे ऐसे बेशकीमती मोती देकर गयी। तब उस ब्राह्मणी को बुलाया गया और उससे पूछा की ऐसे मोती कहा से लायी तू। ब्राह्मणी ने हंस वाली सारी बात बतायी और बोली कि मेरे ऊपर तो पीपल परमेश्वर की कृपा हुयी।

राजा अपने सैनिको को बोलता है कि इसके घर से पीपल का पेड़ लेकर आओ।

ऐसा पेड़ तो राजमहल में होना चाहिए। जब राजा के सिपाही पीपल खोदने लगे तो पीपल का पेड़ तो नहीं निकला बल्कि सैनिको के कांटे चुभने लगे। राजा ने कहा की वो पीपल का पेड़ तो इनकी किस्मत में ही लिखा हुआ हैं। उसको वही रहने दो।

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