पंथवारी माता की पूजा और देवरानी जेठानी : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी
एक समय की बात हैं, दो देवरानी जेठानी होती है। देवरानी बहुत नियम धरम वाली थी। वह प्रतिदिन नहा धोकर पंथवारी माता के मंदिर जाती थी, उनके जल चढ़ती थी और पंथवारी माता की पूजा करके वापिस आ जाती थी। और जो वह जेठानी थी वो अपनी देवरानी के लिए कहती थी की ओहो यह तो बड़ी पंथवारी वाली नियम धर्म वाली हैं। और वो गोबर टोपले में भर कर ले जाती है और गोबर तो रोढ़ी पर दाल देती है और टोपला पंथवारी माता पे झटक कर चली जाती थी।
पंथवारी माता सोचती है कि देखो तो ये देवरानी पानी भरने आती है तो ये तो बिचारी मेरे ऊपर जल चढ़ाती है और ये जेठानी मेरे ऊपर गोबर वाला टोपला झटक कर चली जाती है।
फिर वो बोलते है कि इसको तो अब चमत्कार बताना ही पड़ेगा।
फिर क्या होता है की जब वो जेठानी खाना खाने बैठती है तो उसकी थाली में कीड़े हो जाते है। फिर तो वह थाली एक तरफ सरका देती है और उठ जाती है। ऐसे करते करते काफी दिन व्यतीत हो जाते है।
उसकी सास बोलती है कि बेटी तू ऐसे कैसे उठ जाती है, क्या बात है, खाना भी नहीं खाती है और भरी की भरी थाली एक तरफ सरका कर उठ जाती है। तो इस पर जेठानी कहती है कि नहीं कोई बात नहीं है , मुझे भूख नहीं है , मुझे भाता नहीं है। तो फिर उसकी सास ने कहा कि जब तुझे भूख नहीं है तो थाली में खाना लेती क्यों है।
फिर कुछ दिनों बाद वापिस सास ने कहा कि बता तो सही क्या बात है। तो जेठानी कहती है कि मेरी थाली में तो कीड़े ही कीड़े है, क्या खाऊ में। फिर जब बाकी सब लोग देखते है तो उनको उसकी थाली में कीड़े नहीं दिखते है। सास बोलती है कि देख इसमें तो कोई कीड़े नहीं है। वो खाने बैठती है तो उसे तो फिर कीड़े ही दिखने लगते है।
तब फिर जेठानी देवरानी को कहती है की तू तो सतवादी (सत् पे चलने वाली ) है, तू ही कही प्रार्थना कर।
फिर देवरानी मन्दिर जाकर पंथवारी माता से कहती है कि है पंथवारी माता मेरी जेठानी प्रतिदिन भूखी सोती है। वो खाना खाने लगती है तो उसे खाने में कीड़े ही कीड़े दीखते है। और वो पंथवारी माता से प्रार्थना करती है कि हे अन्नदाता मैं आपको सच्चे मन से पूजती हूँ तो मेरी जेठानी को खाने में कीड़े नहीं दिखाये दे और वो अच्छे से खाना खा पाये।
उस समय सतयुग चल रहा था तो पंथवारी माता स्वयं बोलते है कि तू तो मेरे जल चढ़ाती है और तेरी जेठानी को जलन मचती है तो कि वो गोबर भर कर जब रोड़ी पे डालकर टोपला मेरे ऊपर झटक देती है। और मेरे ऊपर पूरे दिन कचरा रहता है। तो फिर में उसको चमत्कार नहीं बताऊँ तो क्या करू।
तब देवरानी कहती है कि मैं उसको जाकर बताती हूँ और बोलती हूँ कि वो ऐसा नहीं करे। और आप भी अब उनके कीड़े मत अवाना।
फिर पंथवारी माता कहते है कि ठीक है जा समझा दे उसको। तब देवरानी जाकर जेठानी को कहती है कि भाभीसा आप मेरी पंथवारी माता पे टोपला झटक के क्यों आते हो,गोबर की रोड़ी बनाने के बाद ? अब आप ऐसा मत करना और मेरी माता पे जल चढ़ाना। भली जल नहीं भी चढ़ाओ तो टोपला तो कभी मत झटकना। जेठानी बात मान लेती है और उसके सब कीड़े मिट जाते हैं।
हम भी पंथवारी माता से यही प्रार्थना करते है कि “हे पंथवारी माता जैसी लाज आपने देवरानी की रखी वैसी सबकी रखना और देवरानी जैसा धर्मपरायण सबको बनाना।”