खांडे से शादी : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी
एक समय की बात है, सेठ सेठानी होते है। उनके पास बहुत धन दौलत होती है। उनके बहुत बड़ा मकान है। परन्तु उनके कोई संतान नहीं होती है। सेठानी बहुत नियम धरम वाली थी। उसके मकान में एक बावड़ी भी थी। वहाँ एक पीपल का पेड़ था। सेठानी प्रतिदिन नहा धोकर पीपल की पूजा करती, मन्दिर जाती और आराम से रहती।
होली के दिन आये। होली के लिए सेठजी खांडे लाये। सेठानी ने सोचा कि क्यूँ न इस खांडे को ले जाकर शादी करा दे। सेठानी सेठजी से बात करती है कि क्यों न अपन इस खांडे को ले जाकर इसकी शादी करा दे। अपने भी घर में बहु आ जाएगी। अपन दोनों अकेले ही रहते है।
बहु के आने से घर में खुशियाँ जायेंगी। सेठजी बोलते है कि खांडे से कौन अपनी बेटी की शादी कराएगा।
सेठानी बोलती है कि नहीं शादी तो करानी है खांडे की। अपने महाजनों में व्यापार करने विदेश तो जाते ही हैं। आप तो लड़की पसंद करके आओ।
सेठानी के बहुत बार कहने पर सेठजी लड़की देखने के लिए चले गए। सेठजी एक गाँव में गए। वहाँ उन्होंने देखा कि छोटी छोटी लड़कियाँ रेती में घर बनाती, बिगाड़ती। उन लड़कियों में से एक लड़की बोलती है कि भाई में तो बनाये हुए घर नहीं तोडूंगी। सेठजी को वो लड़की ठीक लगी। सेठजी ने उस लड़की से पूछा कि बेटा कौन जात हो। लड़की बोलती है में महाजन हूँ। सेठजी ने मन ही मन सोचा कि वा चलो अपना काम तो हो गया।
सेठजी बोलते है बेटा तेरा घर कहाँ है? लड़की बोलती है वो थोड़ा सा ही दूर मेरा घर है। सेठजी तो उस लड़की के पीछे पीछे चले। सेठजी लड़की के घर गए।
लड़की के पिताजी बोलते है पधारो सा, पधारो सा। सेठजी को भोजन कराया, उनकी खूब ख़ातिरदारी करी। लड़की के पिताजी बोलते है कैसे पधारना हुआ आपका। सेठजी बोलते है एक काम से आया हूँ। ये जो आपकी लड़की वो आपको मुझे देनी पड़ेगी। हम इसको अपनी बहु बनाना चाहते है, पर एक बात है बापू (बेटा) तो विदेश गए है, खांडा लेकर आऊंगा उसके बदले तो उसी से शादी करानी पड़ेगी। लड़की के पिताजी बोलते है कोई बात नहीं, महाजनों में तो ये सब चलता ही है।
सेठजी बारात लेकर गए और खांडा से उस लड़की की शादी करा दी। बहु घर पर आ गयी। उसको अच्छे अच्छे कपड़े पहनाते,अच्छा अच्छा खाना खिलते। बहुत ऐशो आराम से रखते थे उसको। जैसा बहु कहती वैसा ही सेठ सेठानी करते। एक कमरा छोड़ कर सारे घर की चाबियाँ उसको दे दी। बहु तो सारे घर का काम करती और सेठानी मंदिर जाती। बहु खाना बना कर रखती। सेठानी जब मंदिर से घर आती तो दोनों सास बहु साथ में ही भोजन करती।
बहु को बोलकर रखा था कि होली की आग कभी बुझने मत देना।
एक दिन आग बुझ गयी, वो भागी भागी पड़ोस में गयी और बोली भाभीजी मुझे थोड़े जलते हुए कोयले (वास्ति ) दे दो। पड़ोसन बोलती है कि ओहो आओ बिना पति की बहु। बहु कहती है कि नहीं वो तो परदेस गए है। पड़ोसन कहती है कि इनके तो कोई औलाद ही नहीं है। सेठानी तो बाँझ है। पड़ोसन बोलती है कि तुम्हारे को सब कमरे की चाबी दे रखी है क्या। वो बोलती है कि हाँ बस एक कमरे की चाबी नहीं दे रखी है जिसमें की वो स्नान करते है।
एक दिन बहु सेठानी को कमरे की चाबी रखते देख लेती है,और ताला खोलती है तो क्या देखती है कि अंदर एक बावड़ी है, एक पीपल का पेड़ है, शिवजी का मंदिर है वहाँ वो खांडा रखा है। उसने सोचा ओहो इस कमरे में तो छुपाने जैसा कुछ भी नहीं है, बावड़ी की वजह से ही मुझे चाबी नहीं दी होगी। परन्तु पड़ोसन बोल रही थी की ये तो बाँझ है, ऐसा करती हूँ कि नहाकर इस खांडे को लेकर बावड़ी में गिरकर मर जाती हूँ।
जैसे ही वो कूदने लगी आवाज़ आयी नहीं।
उसने सोचा ऐसे ही लगा होगा और फिर कूदने लगी, अंदर से आवाज़ आई हत्या मत कर। उसने इधर उधर देखा, कोई नज़र तो नहीं आता,कौन बोल रहा है। उतनी देर में पीपल के पेड़ में से एक सुन्दर कुंवर निकला। कुंवर ने कहा चौपड़ पासा खेलना, बहु बोली हा खेलना।
अब तो जब प्रतिदीन सासुजी मंदिर जाये तो बहु भी कमरा खोलकर अंदर जाये, नहाये, पीपल की पूजा करे, कुंवर आवे, उसके साथ चौपड़ खेले, उससे बात करे। इससे बहु को खाना बनाने में देर हो जाती। सासुजी मंदिर से आ जाते और खाना भी नहीं बनता तब तक। एक दिन सासुजी ने बोला कि बेटा आजकल इतनी देर कैसे हो जाती ? कुछ नई सासुजी नींद आ गयी। सेठानी बोलती है कि वा कोई बात नहीं।
ऐसा करते करते कई दिन व्यतीत हो गए और फिर एक दिन वह गर्भवती हो गई। बहु ने कुँवर से पूछा मेरे पीयर खबर भेजू अगर आप सबके सामने बाहर आओ तो।
कुँवर ने कहा हा भेज दो।
बहु ने सेठानी को बोला अपने आगरनी करनी है जो पीयर खबर भेजो। यह सुनकर सेठानी डर गई।हम तो खांडे से शादी कराकर लाये थे बहु को। अब आगरनी में कौन बैठेगा ? ये क्या हुआ। इज़्ज़त बिगड़ जायेगी। फिर भी उन्होंने बहु के पीयर चिट्ठी भेजी।
आगरनी है जो पीयर वाले तो खुश होकर धूम धाम से मायरा लेकर आये। सब कहने लगे कि बेटा – बेटी कुछ तो हुआ नहीं, बेटा कहाँ से आ गया। बहु ने बावड़ी वाला कमरा खोल दिया। ढोल बजने लगा। बहु ने कहा कि सब तरफ जाँच पड़ताल कर लो कही किसी को छुपा तो नहीं रखा है, बावड़ी में, पेड़ पर। लोगो ने सब तरफ देख लिया, कोई भी नहीं है।
सब लोग देखने लगे कि ढोल बजा और पीपल में से सुन्दर सा कुँवर निकला। गृहशान्ति करी, ठाट बाट से मायरा पहना। सब बोलने लगे कि सेठानी के ऐसा सुन्दर लड़का था, पर किसी को पता भी नहीं चला। सासुजी – ससुरजी ने बहु के पैर पड़े और बोले कि तेरी किस्मत से हमे लड़का मिला। बहु ने कहा कि आपकी किस्मत और पूजा पाठ से मुझे पति मिला।
हम भी यही प्रार्थना करते है कि “हे पीपला परमेश्वर जैसी उस पर दया और कृपा करी वैसी सब प करना।”