सोने के लड्डू : प्यारी बाई के कहानी संग्रह से ली गयी दशामाता पर्व की कहानी
एक समय की बात हैं एक बुढ़िया थी। वह नित्य ही पूजा करती थी और मंदिर दर्शन करने जाया करती थी। उसको गणेश जी का इष्ट था। तो वह प्रतिदिन गणेश जी के मंदिर जाती थी और गणेश जी की पूजा करती थी। बुढ़िया का दर्शन करने के बाद घर आकर एक डली गुड़ , एक चमटी आटा , और एक डली घी निकल कर लड्डू बनाकर गणपतिनाथ के भोग लगाने का प्रतिदिन का नियम था।
उसका बेटा तो खेत चला जाता था और बहु पानी भरने चली जाती थी। बुढ़िया नित्य ही दो लड्डू बनाया करती थी और यह कहकर गणपतिनाथ के भोग लगाया करती है कि ” है अन्नदाता गणपतिनाथ, बहु बेटे से छुपकर हैं और आपके और मेरे प्रकट हैं, आप लीजो भोग। ”
उन दो लड्डुओं में से तो एक लड्डू बुढ़िया खुद खा लेती हैं और एक लड्डू कोठी के नीचे लुढ़का देती हैं। ऐसे करते करते काफी दिन व्यतीत हो गए।
पहले होली की रख होली के दूसरे दिन तक रखते थे। बुढ़िया की पड़ोसन के रख बुझने वाली थी , तो पड़ोसन ने उसकी लड़की को बुढ़िया के घर राख (वास्ति) लेने भेजा। बुढ़िया तो अपने प्रतिदिन के नियम से दर्शन करके घर आयी, एक चिमटी आटा लेती हैं , एक ही डाली गुड़ लेती हैं और एक ही डाली घी लेती हैं और लड्डू बना देती हैं। और बोलती है कि ” हैं गणपतिनाथ बहु बेटे से छिपकर और आपके और मेरे प्रकट, आप लीजो भोग ” और ऐसे करके बुढ़िया भोग लगाती हैं।
पड़ोसन की लड़की सब देख लेती हैं। वह जाकर सब अपनी माँ को बताती हैं। वह बोलती है कि भाभी तो पानी भरने चली जाती हैं, भैया खेत प चले जाते हैं , और बाई उनके पीछे से लड्डू बनाकर खाती हैं। उसकी माँ कहती है कि क्या बोल रही है तू , ऐसा नहीं हो सकता, बाई तो बहुत नियम धरम वाली है, वो ऐसा नई कर सकती हैं। तो उसकी बेटी बोलती हैं कि आप स्वयं देखना बाई भैया भाभी के जाने के बाद लड्डू बनाकर खाती हैं। अपनी लड़की की बात सुनकर फिर वो पड़ोसन अगले दिन बुढ़िया के घर जाकर छुप कर देखती हैं।
वो मन ही मन सोचती है कि मेरी बेटी सही बोल रही थी, बाई तो सही में बेटे बहु से छिप कर लड्डू बनाकर खाती हैं।
अगले दिन पड़ोसन जब बुढ़िया की बहु के साथ पानी भरने जाती है तो वो उसकी बहु को कहती है कि तुम्हारी सास तो तुम दोनों से छुप कर लड्डू बनाकर कहती है। बुढ़िया की बहु पड़ोसन की बात नहीं मानती है वो कहती है की ऐसा किसी को बोलना भी मत, मेरी सास तो बहुत अच्छी है वो ऐसा कर ही नहीं सकती। वो कहती है की माँजी मेरे बिना लड्डू करके थोड़ी नहीं खा सकती हैं , तुम झूठ बोल रही हो। उनके तो एक ही बेटा और एक ही बहु है , हमसे छुप लकर थोड़ी वो खायेगी।
पड़ोसन कहती हैं कि मेरे होली की राख बुझने लगती हैं तो मैं अपनी बेटी को तुम्हारे घर भेजती हूँ, तो मेरी बेटी क्या देखती हैं कि तुम्हारी सास तो चुपके से लड्डू बनाकर खा रही हैं। मेरी बेटी जब मुझे बताती है तब मुझे भी विश्वास नहीं होता हैं, तो में अगले दिन तुम्हारे घर जाकर छुप कर देखती तो मुझे विश्वास हो जाता हैं। तुम खुद ही कल देख लेना, वो तुम्हारे जाने के बाद लड्डू बनाकर खाती हैं।
फिर एक दिन बहु भी छुप कर देख लेती है।
फिर तो वह अपने पति को बोलती है कि तुम्हारी माँ तो तुमसे छुप कर लड्डू बनाकर खाती है, मुझे पास वाली भाभी ने बताया। बेटे कहता हैं की मेरी ऐसा थोड़ी करेगी। बहु कहती है की जब पास वाले भाभीजी ने मुझे बताया तो मुझे भी विश्वास नहीं हुआ , जब मेने खुद देखा तो मुझे विश्वास हुआ। वह कहती हैं की तुम भी अपनी आँखों से देख लो फिर तुम्हे भी विश्वास हो जायेगा।
बेटा कहता हैं की मुझे कुछ नहीं देखना। मेरी माँ मुझसे छुप कर कुछ नहीं खाती हैं । मेरे बिना तो मेरी माँ के गले से लड्डू नहीं उतर सकता, मुझे कुछ नहीं देखना। पर उसकी पत्नी तो पीछे ही पड़ जाती हैं। तो फिर एक दिन बेटा भी दरवाजे के पीछे छुप कर देखता हैं, बेटे को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं होता हैं ।
जैसे ही बुढ़िया लड्डू खाने लगती हैं बेटा झट से बोल पड़ता हैं कि ” माँ, माँ मेरे लड्डू कहा हैं? ”
बुढ़िया कहती हैं कि वो देख कोठी के पीछे क्या पड़ा हैं। जब बेटा कोठी के पीछे जाता हैं तो क्या देखता हैं बहुत सारे सोने के लड्डू पड़े हुए थे। बेटा अपनी माँ से कहता हैं कि ऐसे लड्डू तो और बना। माँ कहते हैं की ए बेटा ऐसे लड्डू अब और कहाँ , तेरी किस्मत में इतने ही थे, ये सब तो में तेरे लिए ही कर रही थी। तू अगर अपनी पत्नी और पड़ोसियों के बहकावे में नहीं आता तो और भी ज्यादा सोने के लड्डू मिल पाते तेरे को। अब तो तू इन्ही लड्डू से काम चला और खुश रह। बहु बहुत शर्मिंदा होती हैं।
हम भी गणेश जी से यही प्रार्थना करते हैं कि “जैसे गणेश जी बुढ़िया पे टूटमान हुए वैसे सब पर होये। “