वृक्षारोपण?
रूकिए?
कहीं आप एक ही प्रकार के वृक्षों का पौधारोपण कर पर्यावरण असन्तुलन
की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं?
पर्यावरण संतुलन के लिए पारम्परिक प्राकृतिक वृक्षों का उचित सम्मिश्रण आवश्यक है।
वृक्षारोपण में उचित संतुलन का महत्व :
वृक्षारोपण करते समय एक या 2-3 प्रकार के या नीम, अशोक या अमलतास आदि का ही पौधारोपण कर देने से क्षेत्र विशेष में पारिस्थितिकीय असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। ऐसा कर देने से पक्षियों, पर्यावरण-मित्र कीटों व पर्यावरण-मित्र सूक्ष्मजीवियों को बारह महीने महीने आहार नहीं मिल पाता है। इसलिए उनकी प्रजातियों व संख्या में भारी गिरावट आ रही है।
सामान्य जानकारी के अभाव में कभी-कभी अनेक किमी. तक नीम या किन्हीं एक या दो प्रकार के पेड़ों का ही पौधारोपण कर दिया जाता है। नीम की निम्बोली वर्ष में 20 दिन से एक माह तक रहती है। उसके उपरांत के काल में अनेक किलोमीटर तक पक्षियों को खाने को कुछ नहीं मिल पाता है। इसलिए अधिकांश पक्षी उसके उपरांन्त भूख से तड़फ कर प्राण भी छोड़ देते हैं। अतएव वृक्षारोपण करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक आधा किलोमीटर की परिधी में ऋतु चक्र से हर मौसम में फलने वाले पेड़ लगाए जायें।
अनेक पेड़, विविध फसलों व पौधों में निषेचन (Pollination) के लिए सहयोगी कीटों को आश्रय व आहार प्रदान करते हैं।
ऐसे में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील सभी व्यक्तियों व समूहों को वृक्षारोपण करते समय सभी प्रकार के पारम्परिक पादपों, झाड़ियों एवं वृक्षों का इस प्रकार के संयोजन (Combination) से रोपण करना चाहिए कि वे पर्यावरण में प्राकृतिक सन्तुलन के लिए आवश्यक सभी सूक्ष्मजीवियों, पर्यावरण-मित्र कीटों एवं पक्षियों को आश्रय व आहार प्रदान कर सकें।
इसके अतिरिक्त कई पेड़ यथा पलाश व कई अन्य पौधे, मिट्टी की संधारण क्षमता को बढ़ाते हैं। मिट्टी की जलधारण क्षमता के कारण ही वर्षा ऋतु के बाद भी नदियां प्रवाहमान रहती है। अनेक पौधे व वृक्ष औषधिय महत्व के होते हैंे। इसलिए वृक्षारोपण में मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ाने वाले पौधे, औषधीय महत्व के पौधे, फसलों के मित्र कीटों को आश्रय देने वाले पौधे, मिट्टी की उर्वरा शक्तिवर्द्धक सूक्ष्म जीवियों को आश्रय देने वाले पौधे भी पर्यावरण सन्तुलन हेतु महत्वपूर्ण होते हैं।
एक बार खाली स्थान में कोई भी एक प्रकार का वृक्षारोपण कर देने के बाद वहां पर कोई पौधारोपण नहीं करता और सदा के लिए वह स्थान पारम्परिक वानस्पतिक सम्पदा से स्थाई रूप से वंचित हो जाता है इसलिए वृक्षारोपण करने में उपरोक्त बातों के अनुरूप उचित संतुलन आवश्यक है।
पर्यावरण परिशोधन
सामान्यतया पेड़-पौधे पर्यावरण को प्रदूषण करने वाली कार्बनडाइ ऑक्साइड को तो सोखते ही है, लेकिन कुछ पेड़-पौधे ऐसे प्रदूषणकारी कार्बनिक व अकार्बनिक रसायनों को भी सोंखते हैं, जो अन्य पौधे नहीं सोंख सकते। विशेषतः जिन पेड़ों को हम पवित्र पेड़ों की श्रेणी में रखते हैं यथा पीपल, कदम्ब, बरगद, बेल, तुलसी एवं बाँस। ब्रायोफाइट श्रेणी के पादप मिट्टी की जलधारण क्षमता में प्रचुर वृद्धि करते हैं। मेहन्दी व करौन्दे की झाड़ियाँ कई झाड़ियों में रहने वाले पक्षियों के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
उचित संयोजन
वृक्षारोपण करते समय इन सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए। पेसिफिक विश्वविद्यालय पर्यावरण संवेदनशीलता क्लब ऐसे सभी पर्यावरण के सहिष्णु बन्धुओं व संगठनों से आग्रह करता है कि वे जब भी वृक्षारोपण करें स्थानीय, पारम्रिक, वानस्पतिक सम्मिश्रण को ध्यान में रखते हुए पौधों का चुनाव करेंगे तो हमारा पारिथितिकीय सन्तुलन बना रहेगा। इस संबंध में पौधों का चयन करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए –
- ऐसे पौधे उपरोक्त जो तीन को आश्रय प्रदान करें। कई चिड़ियाएं चैड़े पत्ते वाले पेड़ों की पत्तियों को सिलकर अपने घौंसले बनाती है। कई चिड़ियाएं बोगनविलिया जैसी कमजोर टहनियों वाली झाड़ियों पर घौंसले बनाती है जहाँ बिल्लियों को चढ़ने की संभावना कम रहती है। कई चिड़ियाएं घास एवं तृण में होने वाली कलिकाओं को खाती है। पक्षियों को आश्रय प्रदान कराने हेतु मेहंदी, अमरूद, सीताफल, अनार, बैर, इमली, रत्नजोत, करौंदा आदि लगाए जाने चाहिए।
- पौधे व पेड़ जो भूमि की जलधारण क्षमता को बढ़ाते हैं।
- वो पौधे व पेड़ जो विविध प्रदूषणकारी गैसों को सूक्ष्म मात्रा में सोंखते हैं।
- ऐसे पौधे जो पर्यावरण-मित्र कीटों (Eco friendly insects) को आहार व पोषण प्रदान करें।
इस संबंध में स्थानीय परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए पारम्परिक पौधों का चयन करना चाहिए। पेसिफिक विश्वविद्यालय के प्रबन्ध अध्यययन संकाय के पर्यावरण सहिष्णुता क्लब द्वारा सामान्य जानकारी के लिए एक आधारभूत सूची जारी की जा रही है। जिसका उपयोग सभी कर सकते है –
- बरगद
- पीपल
- देशी बबूल
- रोहिड़ा
- अमलतास
- मीठा टीमरू
- चिलबिल
- गूलर
- खैर
- खेजड़ी
- बैर
- पलाश
- महुआ
- अंजीर
- अमरूद
- ईमली
- आम
- सीताफल
- मौलसिरी
- शहतूत
- आँवला
- जंगल जलेबी (कीकर)
- गोन्दा बड़ा (लिसोड़ा)
- * चन्दन
- गोन्दा छोटा
- अर्जुन
- जामुन
- अनार
- रायण
- बहेड़ा
परिंडे-गर्मियों में पक्षियों के लिए अमृत
उपरोक्त वृक्षों के अतिरिक्त स्थानीय पारंपरिक पौधोें झाड़ियों, वृक्षों, लताओं व तृण अर्थात विभिन्न प्रकार की घास की प्रजातियों का भी पर्याप्त मात्रा में पौधारोपण करना चाहिए। इससे स्थानीय पक्षियों व पर्यावरण-मित्र कीटों को समुचित संरक्षण मिलता है। मिट्टी का कटाव एवं क्षरण रूकता है। उसके ऊपजाउपन में वृद्धि होती है और मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है। अकसर यह सभी पौधे मिल नहीं पाते हैं इसलिए स्थानीय नर्सरी से आग्र करके वृक्षारोपण से पूर्व इनकी व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त पक्षियों के परनी पीने के लिए उथले गड्डे या छोटे मिट्टी के परिंडे आदि की व्यवस्था करनी चाहिए। विशेषकर गर्मी में यह आवश्यक है। पारिस्थितिकीय संतुलन हेतु, उचित वानस्पतिक संतुलन पर पेसिफिक विश्वविद्यालय पर्यावरण सहिष्णुता क्लब की एक विस्तृत विवेचन वाली पुस्तिका भी है जो आप इस क्लब के सदस्य बनकर मंगा सकते हैं
* चन्दन एक मूल परजीवी (root parasite) वृक्ष है। प्रारम्भ में इसके बीज किसी अन्य पौधे की जड़ पर अंकुरित व पल्लवित होने के बाद स्वावलम्बी हो जाता है। इसलिये जहां यह पेड़ होतो है, वहां चिड़ियाएं इसके फलों को खाकर बीज उत्सर्जित करती है। वहां नीचे मिट्टी में अन्य पेड़ों की जड़ें विद्यमान होती हैं तो एक-एक कर चन्दन के नये पादप उगते व बढ़ते रहते हैं दस – पन्द्रह प्रजाति के पक्षी चन्दन के फल खाते हैं।